शिवलिंग के ऊपर लगाए जाने वाले आक्षेपों का खंडन

आक्षेप : क्या शिवलिंग घृणित नहीं है? किसी महिला के निजी अंग (योनि) पर रखे एक पुरुष के निजी अंग की पूजा महिलाओं द्वारा करना और उस पर दूध चढ़ाना! कितना अश्लील है!
उत्तर: वास्तव में अश्लीलता तो तुम्हारे मन में है जो हर चीज में अश्लीलता खोजने को उतावला रहता है। खास तौर पर हिंदू प्रतीकों में, क्योंकि हिंदुओं को कोसने में तुम्हें वीडियो गेम खेलने से ज्यादा मज़ा आता है।
शिव :
शिव का अर्थ है कल्याण (सभी का)। दुनिया के किसी भी शब्दकोश में इसके लिए कोई समानांतर शब्द नहीं है। हिंदू सभी का कल्याण चाहते हैं। यही कारण है कि वे "ॐ नमः शिवाय" का जप करते हैं - जो सभी का कल्याण करता है, मैं उस परमपिता परमात्मा के समक्ष समर्पण करता हूँ। बिना किसी भेदभाव के, सभी के कल्याण की प्रार्थना हिन्दू धर्म के अतिरिक्त किसी अन्य विचारधारा में नहीं पाई जाती।
लिंग:
लिंग का अर्थ है चिन्ह। जैसे स्त्रीलिंग का अर्थ है कोई ऐसी वस्तु जो स्त्रीरूप में कल्पित की जा सके। अब वह एक वास्तविक महिला भी हो सकती है या कोई ऐसी वस्तु जो स्त्री रूप में सोची जा सके। उदाहरण के लिए, नदी, लता आदि। इसी तरह पुल्लिंग उसे कहते हैं जो पुरुष के प्रतीक रूप में माना जा सके, जैसे आदमी, पहाड़, वृक्ष आदि।
शिवलिंग:
इसी प्रकार जो शिव के प्रतीक रूप में माना जा सके, वही शिवलिंग है (अर्थात कुछ ऐसा जिसके प्रति हम सभी के कल्याण की हमारी शुभभावनाओं को जोड़ सकें।)
फिर प्रतीक के रूप में पुरुष जननांग क्यों ?:
वह प्रतीक या चिन्ह क्या हो सकता है? वेदों में अनेक जगह परमपिता परमात्मा को एक ऐसे स्तम्भ के रूप में देखा गया है जो समस्त सात्विक गुणों, शुभ वृत्तियों का आधार है। वही मृत्यु और अमरता, साधारण और महानता के बीच की कड़ी है।
यही कारण है कि हिंदू मंदिरों और हिन्दू स्थापत्य कला में स्तम्भ या खंभे प्रचुर मात्रा में देखे जाते हैं।
जो लोग शिवलिंग में पुरुष का जननांग देखते हैं, उन्हें हर बेलनाकार वस्तु में शिश्न ही दीखता होगा? जैसे खम्भे, बेलन, सरिये, अपनी उंगलियों तक में? यह एक मानसिक विकार ही है जिसका हाई वोल्टेज के बिजली के झटकों से ही इलाज किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त, योग साधना भी अग्नि की लौ पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करने को कहती है, जो स्वयं शिवलिंगाकार है। इसका भी स्पष्ट आधार वेदों में मिलता है।
शिवलिंग और कुछ नहीं ऐसा लौकिक स्तंभ ही है जिस पर हम (अग्नि की लौ की तरह) ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और हमारी कल्याणकारी भावनाओं को उससे जोड़ सकते हैं। यही कारण है कि शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। ज्योति वह है जो आपके अंदर के अंधकार को दूर करके प्रकाश फैला दे। आत्मज्ञान का वह पथ जो अलौकिक दिव्य प्रतिभा की ओर ले जाता है। (आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् - प्रकाश से पूर्ण, अज्ञान अंधकार तम से हीन)
यह पद्धति बहुत उत्कृष्ट परिणाम देती है। योग सिद्धि के इस मार्ग का अनुसरण करने वालों ने अनेक चमत्कार किए हैं। यही कारण है कि शिव समस्त योग सिद्धियों के स्रोत हैं।
आक्षेप : पर महिला का निजी अंग (योनि) लिंग के नीचे क्यों होता है?:
उत्तर : पुनः ये तुम्हारा मानसिक विकार ही है। योनि का मतलब है घर। मकान नहीं घर। अपने स्थायी पते की तरह। यही कारण है कि जीवों की विभिन्न प्रजातियों को योनि कहा जाता है। जब कोई कुछ घृणित करता है, तब हम उसे, "तू शूकर (सूअर) योनि में जन्म लेगा।" कहकर धिक्कारते हैं। मैं तुम्हें इस तरह धिक्कारना नहीं चाहता लेकिन अगर तुम हिंदुओं के महान विश्वासों पर घृणित प्रलाप करोगे तो तुम इसी लायक हो।
दीपक भी 'लौ' की 'योनि' है। दीपक लौ को जलने के लिए स्थिर आधार प्रदान करता है। उसी प्रकार ब्रह्मांडीय स्तंभ को भी एक ठोस आधार के लिए नींव की जरूरत है। वरना स्तम्भ गिर जाएगा। स्तंभ शक्तिशाली होना चाहिए है जो विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी स्थिरता प्रदान करने में सक्षम हो। पृथ्वी पर एक ठोस आधार के बिना, स्वर्ग के सपने, सातवें आसमान में 72 हूरों और शराब के दु: स्वप्न के अलावा कुछ नहीं हो सकते।
इसलिए हम कहते हैं शिव को शक्ति (ऊर्जा) के आधार की जरूरत है।
शिव लिंग है। शक्ति योनि है।
यही शिव और शक्ति के सम्बन्ध का मूलतत्व है।
अन्य व्याख्याएं :
वेदों का एक बुनियादी नियम है: यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे (जैसा पिण्ड में घटता है वैसा ही ब्रह्माण्ड में घटता है।)
इसलिए यही शिव-शक्ति का सम्बन्ध दुनिया के प्रत्येक सृजनात्मक (और यहां तक ​​कि विनाशकारी) घटनाओं का आधार है। जब शिव और शक्ति मिलते हैं, तो सृजन होता है। और उनके वियोग से ही विनाश होता है। यही शिव और शक्ति, मित्र और वरुण, अग्नि और सोम, उष्ण और शीत, द्युलोक और पृथ्वी के रूप में परिणत होकर सृजन और प्रलय करते हैं।
यह जीवन के सभी पहलुओं में लागू होता है। विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इसकी व्याख्याओं को दिखाने के लिए ही लोगों ने इस सिद्धांत के आधार पर प्रतीकात्मक कहानियां बनाई। वेद ही इस सिद्धांत का स्रोत है और इसका अभ्यास योग में है। पुराण और अन्य ग्रंथ इसी सिद्धान्त को विभिन्न प्रतीक और रूपक देते हैं।
हम संसार में देखते हैं कि शक्ति स्त्रीरूपी है। नारी स्थिरता और पोषण प्रदान करने वाली है। तुमने अपनी माँ से ही गर्भ में और बाहर भी पोषण पाया था। इसीलिए वैदिक संस्कृति में गौ, गंगा, तुलसी आदि हर पोषण प्रदायक वस्तु को माँ के रूप में देखा जाता है। पुरुष बाहर की ओर उपक्रम करता है क्योंकि वह स्थिर हो जाता है। यह प्रतीकात्मक है।
अगर यह प्रतीकवाद आपको प्रभावित करता है, तो इससे लाभ लीजिए। इसके द्वारा पहले अपने मन को जीतिए फिर आत्मा को। योगी यही करते हैं।
अगर यह प्रतीकवाद आपको प्रभावित नहीं करता तो कुछ और चुनिए। वह अनंत परमात्मतत्व अनेक मार्गों द्वारा जाना जाता है और प्रत्येक मार्ग अपनी ही सुंदरता से अनुस्यूत है। अगर आपको उन मार्गों में से भी कुछ नहीं जँचता तोे स्वयं अपना मार्ग बनाइए। अगर वह भी असंभव है, तो साम्यवाद और अहंकार के अपने ब्रांड का आनंद लें। लेकिन किसी चीज का केवल इसीलिए अपमान मत करो क्योंकि वह तुम्हारी बुद्धि में नहीं घुस रहा है। क्योंकि छोटी बुद्धि का कोई मनुष्य यदि किसी उच्च सिद्धान्त को न समझ पाए और उसका खंडन करने की इच्छा रखता हो तो पहले वो उस उच्च-सिद्धान्त को अपनी बुद्धि के स्तर तक लाएगा, तभी वो उसपर जीभ हिला पाएगा, यही कुछ लोगों का हाल है।
आक्षेप : शिव महापुराण की अभद्र कहानियों के बारे में क्या कहेंगे?
उत्तर : हदीसों, कुरान, पुराने नियम आदि की कहानियों के बारे में आप क्या कहेंगे? और आपके कम्युनिस्ट नायकों के निजी जीवन की किंवदंतियों के बारे में? और आपके नास्तिक आइकॉन्स की हताशा और अवसाद के बारे में?
वेदों के शिव की अवधारणा को चुनौती देकर देखो। और फिर एक आम हिंदू क्या करता है? क्या तुम्हारा किसी भी तरह का अपमान करता है? क्या उसने कभी कहा, "जो मेरे शिवलिंग पर दूध नहीं चढाता मुझे उससे नफरत है?" वह उसके विश्वासों का सम्मान करने वालों के साथ ही अपने पर्व मनाता है और तुम्हें वह आमंत्रित तक नहीं करता। तो फिर हानिरहित पर प्रहार क्यों? और जब वह प्रतिरोध करे तो हाय तौबा मचाना?
शिव और शक्ति के सम्बन्ध को दर्शाती बहुत सारी प्रतीकात्मक और ऐतिहासिक कहानियाँ शिवपुराण में मिलती हैं। जहाँ कुछ बहुत सुंदर हैं वहीं कुछ समझने में बहुत कठिन हैं। कुछ प्रक्षिप्त भी हो सकती हैं। यही कारण है कि पुराण पग पग पर कहते हैं: "जो वेदों के अनुसार समझ में आए वही अपनाएं, बाकि रहने दें, वेद ही परम प्रमाण हैं।" और हिन्दू करते भी यही हैं।
यह सच है कि हिंदुओं शिव-शक्ति उपासना को बेहतर तरीके से समझने की आवश्यकता है। उन्हें प्रतीकों का वैदिक स्रोत जानना चाहिए और अपने विश्वास को और मजबूत बनाना चाहिए। लेकिन शिवरात्रि मनाने के लिए उन्हें तुम्हारी परमिशन की जरूरत नहीं है।
आक्षेप : शिवलिंग के ऊपर दूध की बर्बादी के बारे में क्या कहेंगे?
उत्तर : जो लोग इसके बारे में सबसे अधिक बात करते हैं, वो लोग पेप्सी पीते हैं, फैशन में पैसा उड़ाते हैं, नाइट पार्टीज़ में टल्ली रहते हैं और छंटे हुए अय्याश होते हैं। "ओह माई गॉड' के निर्माताओं ने भी शिवलिंग पर दूध अर्पण को त्रासदी के रूप में प्रचारित किया जबकि वे खुद देश के सबसे बड़े अय्याशों में से हैं। सारे पिगरलों को महंगे ब्रांड्स की बजाय मुहल्ले के दर्जी द्वारा सिले कपड़े पहनने चाहिए ताकि शिवलिंग के ऊपर 'व्यर्थ' बहे दूध की भरपाई हो सके। उपदेश देने से पहले खुद के जीवन को सुधारो।
भक्तों के लिए: वेदों में सहस्त्रधारा (अथर्ववेद 10.10) की एक अवधारणा है। अमृत ​​की हज़ारों धाराएं जो कि स्तम्भ को अनवरत पोषण देती हैं। इस ही मंत्र के अनुसार इस गाय को इस सहस्त्रधारा का स्रोत माना जाता है। इसी प्रतीक की पूर्ति के लिए शिवलिंग पर दुग्ध अर्पित किया जाता है। और हम संकल्प लेते हैं कि इस शिव-शक्ति के जोड़े को हम हमारा सर्वोत्कृष्ट समर्पित करेंगे। यह अवधारणा देवता और मानव संबंधों के मूलभूत सिद्धान्त से आविर्भूत है (गीता का कर्मयोग अध्याय देखें)। देवता हमें देते हैं। और हम पुनः उन्हें ही अर्पित कर देते हैं। शिव-शक्ति हमें आशीर्वाद और स्थिरता देते हैं। और तेरा तुझको अर्पण की भावना से हम उन्हें उनका ही दिया समर्पित कर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
शिव-उपासना मन को पूरी तरह भक्तिमय कर देती है, व्यक्तित्व के निष्क्रिय पहलुओं को सक्रिय करती है, रगों में उत्साह उमंग का संचार करती है और सुनिश्चित करती है कि आप सही रास्ते पर हैं।
शिव को रुद्र रूप में भी देखा गया है। अगर आप शिव को धोखा देने की कोशिश करोगे, तो यह आप पर क्रोध के रूप में वापस आ जाएगा। वे भोले हैं तो भयंकर भी हैं। शिव सहस्त्रधाराओं द्वारा हमारे जीवन में प्रसन्नता भरते हैं। हम इसे वापस अर्पित करते हैं। चक्र बना रहता है।
आप अपने पैसे, ऊर्जा, संसाधनों को अय्याशी में बर्बाद करते हो। हम उसे अपने आप को पशुता से मुक्ति और महादेव को धन्यवाद देने में उपयोग करते हैं। धर्म के बिना मनुष्य पशु है। और क्योंकि हम अपने मन को शुद्ध रखते हैं, हम और अधिक संसाधनों का सृजन करने और जरूरतमंदों को खिलाने के में सक्षम होते हैं। गोमांस खाने वाले, शराब-सिगरेट पीने वालेे, दिखावटी ब्रांड पहनने वाले या मज़े मारने और स्टेटस सिंबल के लिए हज़ारों और तरीकों से पैसा बहाने वाले जो लोग शिवलिंग पर दूध अर्पित करने को पैसे बर्बादी कहते हैं, वे इसकी महत्ता को कभी नहीं जान सकते।
हिन्दू का मानना ​​है कि धन अनन्त है। धन का लाभ धन इकट्ठा करना नहीं है धर्म करना है। और धर्मपालन द्वारा और धन अर्जित कीजिए।
अपील:
शिवरात्रि मनाइये। नियमित रूप से भगवान शिव की पूजा अर्चना कीजिए। दूध अर्पित कीजिए। और गोशालाओं को दान दीजिए। गायों का संवर्धन करें। ॐ नमः शिवाय का अभिवादन की तरह प्रयोग करें। और भगवान शिव और माँ शक्ति के खिलाफ बोलने वालों के प्रति रूद्र (जो दुष्टों को रुलाता है) बनें।
ॐ नमः शिवाय।
Sanjeev Newar Agniveer
अनुवाद : Mudit Mittal
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भगवान शिव के संकल्प मात्र से ही सूर्य प्रतिदिन यथासमय उदित-अस्त होता है, चन्द्र प्रतिपक्ष घटता-बढ़ता है। ऋतुए यथावत्सर क्रम से आविर्भूत होती हैं, तनिक भी परिवर्तन या विपर्यय नहीं होता।
कभी अवनितल, तरु, निकुंज और लताएँ पल्लवों-पुष्पों से आच्छन्न होकर मनोज्ञता की मूर्ति बन जाती है तो कभी उनमें एक पीला-पात भी दिखाई नहीं देता। कभी नाना पक्षियों के कलरव से चहल-पहल तो कहीं एक शब्द भी सुनाई नहीं देता। कभी काले बादलों की घटाएं, विद्युल्लताओं का परिनर्तन, मेघ का गर्जन-तर्जन, तो कभी हेमंत का शीतजन्य हाहाकार और शिशिर का सीत्कार अपना अभिनय दिखाते हैं। 
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यह सब सुचतुर संचालक शिल्पी शिव की, कुशलता, उनकी माया का विलास ही तो है। सब कारणों के कारण, अधिपति, सबके रचियता भगवान शिव ही सर्वत्र अनुस्यूत होकर अपने वैभव से इस प्रकृति की छवि को नयनाभिराम बना रहे हैं।
वे ही दिग्वसन होते हुये भी भक्तों को अतुल ऐश्वर्य देने वाले हैं, श्मशानवासी होते हुये भी त्रैलोक्याधिपति हैं, योगिराजाधिराज होते हुये भी अर्धनारीश्वर हैं, सदा कान्ता से आलिंगित रहते हुये भी मदनजित् हैं।
अज होते हुये भी अनेक रूपों से आविर्भूत हैं, गुणहीन होते हुये भी गुणाध्यक्ष और अव्यक्त होते हुये भी व्यक्त हैं। सबके कारण होते हुए भी अकारण हैं, अनंत रत्न-राशियों के अधिपति होते हुये भी भस्मविभूषण है।
इस जगत के संचालक यह परात्पर शिव ही हैं। यही परमतत्व हैं, सर्वत्र अनुस्यूत परमकारण, सबके अधिपति, सबके रचियता, पालयिता व संहर्ता हैं ।
उन भगवान शिव की कृपा हम सभी पर बनी रहे। महाशिवरात्रि की सभी को शुभकामनाएं।
।। हर हर महादेव ।।
।। ॐ नमः शिवाय ।।

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