प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्रमोदी जी का सन २०१६ का अंतिम संबोधन में घोषित योजनाएं क्या पिछली योजनाओं का कॉपी-पेस्ट नहीं थीं?
भारत के माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्रमोदी जी का सन २०१६ साल का राष्ट्र के नाम अंतिम संबोधन में देश के लिए नया क्या और पुराना क्या था? सन २०१६ का अंतिम संबोधन में घोषित योजनाएं, पिछली योजनाओं का कॉपी-पेस्ट नहीं थीं?
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प्रधानमंत्री का राष्ट्र को सम्बोधन, नोटबंदी की विफलता के प्रच्छन्न स्वीकार के सिवा क्या था?
जो उद्देश्य उन्होंने 8 नवम्बर को घोषित किए थे, उनकी क्या उपलब्धियों का क्या हुआ? कितना काला धन मिला, पाकिस्तान पोषित आतंकवाद पर कितनी नकेल लगी?
देश को कोई जानकारी नहीं देंगे? नागरिकों ने जो अत्याचार भोगा, जो मौतें हुईं, उन पर किसी समवेदना का इज़हार भी नहीं? घर ख़रीदने, जनन, वरिष्ठ नागरिकों की बचत पर मामूली रियायत आदि तो अरुण जेटली अपने बजट में ही समेट लेते!
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कांग्रेसी वित्तमंत्री जिन टोटकों की कभी बजट भाषणों में जुगाली करते थे, वड़ा प्रधान वर्ष की ढलती घड़ियों में उसी अन्दाज़ में देशवासियों के समक्ष उथला गए। पूरे पौन घंटे। क्या दुस्साहस है, क़सम से।
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प्रधानमंत्री के पास नोटबंदी को सही ठहराने के लिए कोई तथ्य नहीं था, इसलिए बस सामान्य बातें दोहराने के अलावा कोई उपाय नहीं था, कितना काला धन ख़त्म हुआ, कितना आतंकवाद ख़त्म हुआ, एक भी ठोस तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाए। इसलिए इसे नोटबंदी की पूर्ण नाकामयाबी की स्वीकृति ही माना जाना चाहिए। हाँ,
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इस बार नया तर्क दिया गया कि महँगाई और कालाबाजारी सब इन नोटों की वजह से थे, सरकारी नीतियों की वजह से नहीं! लोगों के पास ज्यादा नोट हो गए थे, ज्यादा नोटों की वजह से महँगाई बढ़ गई थी, पूँजीपतियों के मुनाफे कमाने से नहीं। तो क्या आज से महँगाई और कालाबाजारी सब समाप्त हो गए?
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मोदी जी कहते हैं बेईमानों को बख्शा नहीं जायेगा, तकनीक की मदद से उनको ढूँढकर सजा दी जाएगी! पर सरकार के पास तो पहले ही सारी जानकारी है पनामा-स्विट्जरलैंड-लक्जेमबर्ग आदि में काले धन के खाते वालों, बैंकों के 10 लाख करोड़ के कर्ज मार लेने वालों, 5 लाख करोड़ से ज्यादा के टैक्स डिफॉल्टरों, बड़े मकानों, कारों, विदेश यात्रा करने वाले, महँगे सामान खरीदने वालों की।
क्या उनको पकड़ने की कोई कोशिश हुई?
इन सब के खिलाफ क्या हुआ?
क्या इनके नाम मोदी जी की सरकार को मालूम नहीं? या उन्हें विजय माल्या, जनार्दन रेड्डी, ललित मोदी, संजय भंडारी, हसन अली की तरह यह सरकार उपहार देती रहेगी?
ये सब तो पहले ही बख्श दिए गए हैं। 52911 मुनाफा कमाने वाली कम्पनियां कोई टैक्स नहीं देतीं। उनके बारे में क्या कहना है?
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और गरीब लोग? सैंकड़ों जानें गँवा बैठे, काम-धंधे ठप्प हो गए, करीब 80 लाख गरीब लोगों को बेरोजगार कर दिया, गरीब किसानों की फसलें कौड़ियों के दाम बिकीं या ना बिकने से सड़ गईं/ फेंक दी गईं। सब सजा भ्रष्टाचारियों-कालाबाजारियों-टैक्स चोरों को नहीं, इन्हें ही मिली है।
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जितनी भी घोषणाएं की गईं वे सब वही पुरानी, कुछ नए नाम से, कुछ थोड़ी तबदीली से। ये सब वही हैं जो पिछले 70 साल से चल रहीं थीं और उनका नतीजा भी हमें मालूम है। जिस प्रकार कांग्रेस ने इन योजनाओं द्वारा समाज में भ्रष्ट लोगों की एक जमात खड़ी की है वही आगे मोदी जी जारी रखेंगे। आम मेहनतकश लोगों को गरीब-भूखे रखते हुए खैरात-बख्शीश देने की जो नीति नेहरू-इंदिरा की कांग्रेस ने चालू कीं थीं वही चलती रहेंगी। चुनाव के पहले मोदी जी इस सब्सिडी के खिलाफ थे और कहते थे कि हम लोगों को खैरात पर निर्भर होने के बजाय आत्मनिर्भर बनाएंगे, उसका क्या हुआ?
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कर्ज के ब्याज में छूट, ऐसी योजनाएं पहले से मौजूद हैं - इनका लाभ भी अब वाली पहले से चल रही ऐसी ही छूट वाली योजनाओं की तरह सिर्फ बड़े किसानों -व्यापारियों को ही होता आया है और होगा। गरीब-सीमांत किसानों तथा खेत मजदूरों जो ग्रामीण जनसँख्या का 78% हैं उन्हें क्या फायदा? सूदखोरों से लोन लेने वालों का क्या? इंदिरा या राजीव आवास योजनाएं जैसी स्कीमें भी बहुत पहले से चल रही हैं। नया क्या?
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वरिष्ठ नागरिकों को तो नुकसान ही हुआ - पहले 9 लाख जमा पर 9% ब्याज वाली सीनियर सिटीजन स्कीम यह सरकार बंद कर चुकी है, अब उससे कम ब्याज 8% सिर्फ साढ़े सात लाख तक वाली योजना का लॉलीपॉप हाथ में आया है।
गर्भवती महिलाओं के लिए 6 हजार रुपये 2013 की योजना है जिसे मोदी ने अब तक लागू होने से रोका हुआ था।
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किसान क्रेडिट कार्ड को रुपे कार्ड में बदलने का काम तो 3 साल से चल रहा है। जहाँ तक वर्किंग कैपिटल लिमिट्स का सवाल है यह तो रिजर्व बैंक पहले ही बढ़ा चुका है, मोदी जी!
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रबी की बुआई में वृद्धि? अभी ना बुआई का काम पूरा हुआ है ना राज्य सरकारों ने ऐसा आँकड़ा अभी इकठ्ठा किया है, फिर मोदी क्या साफ झूठ नहीं बोल गए? और अगर 6% वृद्धि को मान भी लिया जाये तो यह पिछले सामान्य मानसून वाले साल से अभी कम है। सरकार कुछ भी कहे उसे यह असलियत अच्छी तरह मालूम है, इसीलिए गेहूँ का आयात अभी से चालू कर दिया गया है।
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कुल मिलाकर संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी और नोटबंदी की तकलीफें झेल रही जनता को इन लॉलीपॉपों से खुश करने की कोशिश की गई है।
थोथा चना बजे घना!
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प्रधानमंत्री का राष्ट्र को सम्बोधन, नोटबंदी की विफलता के प्रच्छन्न स्वीकार के सिवा क्या था?
जो उद्देश्य उन्होंने 8 नवम्बर को घोषित किए थे, उनकी क्या उपलब्धियों का क्या हुआ? कितना काला धन मिला, पाकिस्तान पोषित आतंकवाद पर कितनी नकेल लगी?
देश को कोई जानकारी नहीं देंगे? नागरिकों ने जो अत्याचार भोगा, जो मौतें हुईं, उन पर किसी समवेदना का इज़हार भी नहीं? घर ख़रीदने, जनन, वरिष्ठ नागरिकों की बचत पर मामूली रियायत आदि तो अरुण जेटली अपने बजट में ही समेट लेते!
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कांग्रेसी वित्तमंत्री जिन टोटकों की कभी बजट भाषणों में जुगाली करते थे, वड़ा प्रधान वर्ष की ढलती घड़ियों में उसी अन्दाज़ में देशवासियों के समक्ष उथला गए। पूरे पौन घंटे। क्या दुस्साहस है, क़सम से।
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प्रधानमंत्री के पास नोटबंदी को सही ठहराने के लिए कोई तथ्य नहीं था, इसलिए बस सामान्य बातें दोहराने के अलावा कोई उपाय नहीं था, कितना काला धन ख़त्म हुआ, कितना आतंकवाद ख़त्म हुआ, एक भी ठोस तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाए। इसलिए इसे नोटबंदी की पूर्ण नाकामयाबी की स्वीकृति ही माना जाना चाहिए। हाँ,
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इस बार नया तर्क दिया गया कि महँगाई और कालाबाजारी सब इन नोटों की वजह से थे, सरकारी नीतियों की वजह से नहीं! लोगों के पास ज्यादा नोट हो गए थे, ज्यादा नोटों की वजह से महँगाई बढ़ गई थी, पूँजीपतियों के मुनाफे कमाने से नहीं। तो क्या आज से महँगाई और कालाबाजारी सब समाप्त हो गए?
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मोदी जी कहते हैं बेईमानों को बख्शा नहीं जायेगा, तकनीक की मदद से उनको ढूँढकर सजा दी जाएगी! पर सरकार के पास तो पहले ही सारी जानकारी है पनामा-स्विट्जरलैंड-लक्जेमबर्ग आदि में काले धन के खाते वालों, बैंकों के 10 लाख करोड़ के कर्ज मार लेने वालों, 5 लाख करोड़ से ज्यादा के टैक्स डिफॉल्टरों, बड़े मकानों, कारों, विदेश यात्रा करने वाले, महँगे सामान खरीदने वालों की।
क्या उनको पकड़ने की कोई कोशिश हुई?
इन सब के खिलाफ क्या हुआ?
क्या इनके नाम मोदी जी की सरकार को मालूम नहीं? या उन्हें विजय माल्या, जनार्दन रेड्डी, ललित मोदी, संजय भंडारी, हसन अली की तरह यह सरकार उपहार देती रहेगी?
ये सब तो पहले ही बख्श दिए गए हैं। 52911 मुनाफा कमाने वाली कम्पनियां कोई टैक्स नहीं देतीं। उनके बारे में क्या कहना है?
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और गरीब लोग? सैंकड़ों जानें गँवा बैठे, काम-धंधे ठप्प हो गए, करीब 80 लाख गरीब लोगों को बेरोजगार कर दिया, गरीब किसानों की फसलें कौड़ियों के दाम बिकीं या ना बिकने से सड़ गईं/ फेंक दी गईं। सब सजा भ्रष्टाचारियों-कालाबाजारियों-टैक्स चोरों को नहीं, इन्हें ही मिली है।
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जितनी भी घोषणाएं की गईं वे सब वही पुरानी, कुछ नए नाम से, कुछ थोड़ी तबदीली से। ये सब वही हैं जो पिछले 70 साल से चल रहीं थीं और उनका नतीजा भी हमें मालूम है। जिस प्रकार कांग्रेस ने इन योजनाओं द्वारा समाज में भ्रष्ट लोगों की एक जमात खड़ी की है वही आगे मोदी जी जारी रखेंगे। आम मेहनतकश लोगों को गरीब-भूखे रखते हुए खैरात-बख्शीश देने की जो नीति नेहरू-इंदिरा की कांग्रेस ने चालू कीं थीं वही चलती रहेंगी। चुनाव के पहले मोदी जी इस सब्सिडी के खिलाफ थे और कहते थे कि हम लोगों को खैरात पर निर्भर होने के बजाय आत्मनिर्भर बनाएंगे, उसका क्या हुआ?
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कर्ज के ब्याज में छूट, ऐसी योजनाएं पहले से मौजूद हैं - इनका लाभ भी अब वाली पहले से चल रही ऐसी ही छूट वाली योजनाओं की तरह सिर्फ बड़े किसानों -व्यापारियों को ही होता आया है और होगा। गरीब-सीमांत किसानों तथा खेत मजदूरों जो ग्रामीण जनसँख्या का 78% हैं उन्हें क्या फायदा? सूदखोरों से लोन लेने वालों का क्या? इंदिरा या राजीव आवास योजनाएं जैसी स्कीमें भी बहुत पहले से चल रही हैं। नया क्या?
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वरिष्ठ नागरिकों को तो नुकसान ही हुआ - पहले 9 लाख जमा पर 9% ब्याज वाली सीनियर सिटीजन स्कीम यह सरकार बंद कर चुकी है, अब उससे कम ब्याज 8% सिर्फ साढ़े सात लाख तक वाली योजना का लॉलीपॉप हाथ में आया है।
गर्भवती महिलाओं के लिए 6 हजार रुपये 2013 की योजना है जिसे मोदी ने अब तक लागू होने से रोका हुआ था।
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किसान क्रेडिट कार्ड को रुपे कार्ड में बदलने का काम तो 3 साल से चल रहा है। जहाँ तक वर्किंग कैपिटल लिमिट्स का सवाल है यह तो रिजर्व बैंक पहले ही बढ़ा चुका है, मोदी जी!
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रबी की बुआई में वृद्धि? अभी ना बुआई का काम पूरा हुआ है ना राज्य सरकारों ने ऐसा आँकड़ा अभी इकठ्ठा किया है, फिर मोदी क्या साफ झूठ नहीं बोल गए? और अगर 6% वृद्धि को मान भी लिया जाये तो यह पिछले सामान्य मानसून वाले साल से अभी कम है। सरकार कुछ भी कहे उसे यह असलियत अच्छी तरह मालूम है, इसीलिए गेहूँ का आयात अभी से चालू कर दिया गया है।
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कुल मिलाकर संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी और नोटबंदी की तकलीफें झेल रही जनता को इन लॉलीपॉपों से खुश करने की कोशिश की गई है।
थोथा चना बजे घना!
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कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.