भारत में काले धन का इतिहास और अब उसे वापस लाने के नाम पर विमुद्रीकरण द्वारा कैश-लेस समाज के निर्माण के चरणों का पूरा होना

◆ भारत में काला धन उत्पन्न होने का इतिहास शुरू होता है ब्रिटिश अंग्रेजो की टैक्स व्यवस्था और अब इसका आधार बन गया है, उसी पुन्रानी गुलामी कि कर-व्यवस्था पर आधारित हमारी टैक्स व्यवस्था, जिसमे आपको अपने मेहनत से कमाए हुए आय का ६०-७० % टैक्स देना पड़ता है, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में ..
यह टैक्स सिस्टम इसीलिए बनाया गया था (और आज भी है) ताकि उस समय की आम जनता अपना टैक्स ना भर सके और अपने आप को सरकार की नजरो में टैक्स चोर और बेईमान दिखे और इस तरह से अपने प्रति ही चोर और बेईमान भावना वालो को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है ..
वास्तव में आप चोर बेईमान नहीं है, चोर तो सरकार है जो आपकी कमाई का ६०-७० % से लेकर २००% टैक्स वसूलना चाहती है ..
तो आप लोग खामोश क्यों है ..अन्याय का विद्रोह करना आपका हक़ है.. 

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◆ विमुद्रिकरण से सबसे ज्यादा नुकसान गरीब और मध्यम वर्ग को ही हो रहा है और असली टारगेट भी वही है. 
काला धन तो ज्यो का त्यों स्विस, हांगकांग, मारीशस एवं अन्य बैंको में वैसे ही सुरक्षित है ..ये सब आइएमएफ वर्ल्ड बैंक एवं इनके माफियाओं एवं आकाओं-मालिकों के इशारो पर हो रहा है, जो जनता को इन मुद्दों में जीवन भर उलझाए रखकर आपके अपने देश की तमाम प्राकृतिक संसाधनों एवं मानव-संसाधनों को हड़प चुके हैं, और आप कुछ नहीं कर सके, सिवा उन विदेशियों एवं उनकी कंपनियों के नौकर बनने के.
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◆वस्तुतः भ्रष्टाचार को नोटों के डिनोमिनेशन से कोई मतलब नहीं है. अगर सिक्के भी चलाये जाएं तो भी भ्रष्टाचार तो होगा ही, जब तक कि इसे हटाने का कोई सार्थक पहल सरकारों द्वारा नहीं किया जाता. 
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◆ देश मजबूत होते है धनबल से . जिस देश के राजा और प्रजा धनवान हो वही देश मजबूत होता है । 
धन से ही मजबूत सेना बनती है, जो सरहद को सलामत रखती है । देश महान बनते हैं उनकी संस्कृति से, राजा और प्रजा नैतिक हो वो ही देश महान बन सकता है । 
संस्कृति की रक्षा और लोगों की नैतिकता बनाये रखने के लिए सतत धर्म की दवाई पिलानी पडती है । 
और कोइ भी दवा फोकट में नही मिलती । गौधन, अन्नधन या सुवर्णधन, कुछ भी चलता है । 

◆ मोदी ने आज के मन-की-बात में मजदूरों, किसानो एवं अन्य भारतीय नागरिकों से इस देश को कॅश-लेस समाज में बदल डालने की मांग कि है, जिसमे उन्होंने ये भी कहा है, कि जन-धन योजना के तहत सभी का बैंक अकाउंट होना आव्श्यक है, एवं कॅश-लेस समाज के निर्माण में ये भी एक चरण है, जिससे लोग कॅश-लेस समाज का निर्माण कर सकें, आज के विडियो में २२:४५ मिनट से देखिये, ये मोदी अपना सपना कॅश-लेश समाज का निर्माण बता रहे हैं, मेरे कहने का मतलब ये है कि कॅश-लेस समाज का निर्माण करना मोदी का सपना है. जिसे मैंने अपने पिछले लेख में कहा भी था, कि वर्तमान में अल्प-कालिक कंट्रोल्ड मुद्रा बाजार में लाना और बैंकों से निकासी को कण्ट्रोल करना भी प्रधानमंत्री के इसी प्लान का एक हिस्सा है, जिसमे वे और उनके विदेशी माफिया मालिक ये देखना छह रहे हैं कि जनता कितनि हद तक मूर्ख बनायी जा सकती है.
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◆ इन्हीं सब सपनो के चलते, माननीय मोदी भाई को दुनिया भर के नामी पात्र-पत्रिकाओं में मोदी का चेहरा पहले पेज पर है, और मोदी को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ नेता इसी कारण से कहा जा रहा है क्योकि जो काम भारत में पैसठ सालों में न किया जा सका, वो इसने सत्ता में आते ही मात्र ढाई वर्षों में कर दिया, जिसका सपना कभी भी विदेशी माफियाओं ने सोचा भी नहीं होगा, कि भारत में ऐसा कोई नेता को सत्ता में लाया जा सकेगा. 
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अब जरा ये सोचें कि जनता के पास अगर मुद्रा सीमित मात्रा में हो तो बाजार से क्रय शक्ति एवं विक्रय शक्ति किस तरह से बढाई जा सकती है?
इससे क्या इस देश के माइक्रो-स्माल एवं मध्यम स्केल उद्योगों के ऊपर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, और इससे क्या देश में काले धन पर सही मायनों में कोई लगाम लग सकेगा?
मेरे विचार से कोई लगाम नहीं लगा सकेगी कोई सरकार जब तक कि इस देश कि प्रशासनिक कार्य-व्यवस्था को इमानदारी-पूर्वक न चलाया जाए और सभी पदों पर राईट-टू-रिकॉल का क़ानून न लाया जाए.
वस्तुतः भ्रष्टाचार को नोटों के डिनोमिनेशन से कोई मतलब नहीं है. अगर सिक्के भी चलाये जाएं तो भी भ्रष्टाचार तो होगा ही, जब तक कि इसे हटाने का कोई सार्थक पहल सरकारों द्वारा नहीं किया जाता. 
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◆कुछ विद्वानों के हिसाब से स्वीडन जैसे देश से हमें सीखना चाहिए, लेकिन वे यह नहीं बता पा रहे है कि स्वीडन काफी छोटा देश है और वहां कि अर्थव्यवस्था में विविधता भारत के जितनी नहीं है, फिर भी स्वीडन अभी तक पूरी कि पूरी तरह से कॅश लेस नहीं हुआ है, अतः मेरे विचार से स्वीडन से भारत जैसे विशाल एवं विविधता पूर्ण अर्थव्यवस्था वाले देश कि तुलना नहीं की जानी चाहिए..
आज के एडवांस तकनिकी युग में तमाम तरहों कि प्राकृतिक आपदाएं उत्पन्न करवाना तकनिकी रूप से संभव है, और दुश्मन देशों या जो देश उन माफियाओं के मुताबित संधियाँ नहीं करेंगे उनके ऊपर ये सब एक तरह से threat के जैसे ही होगा. 
अब भारत कि स्थिति को ले लें तो अगर इसका दुश्मन देश चाहे या जिस देश में पार्टली हमारी बैंकिंग सिस्टम का सर्वर रखा होगा या जहाँ से संचालित होता रहेगा, उन देशों की शर्तों को हमें मानना पड़ेगा.
.जो कम्पनियां हमे इंटरनेट द्वारा कैशलेस होने की सुविधा देंगीं उनके सर्वर दूसरे देशों में होंगे और उन देशों की संधियां इतनी घातक होंगी कि भारत हमेशा के लिए उनका गुलाम हो सकता है। इन देशों एवं माफियाओं के एक हाथ में लड्डू एवं दुसरे हाथ में लाठी होती है, जिससे लाठी देखकर लड्डू के लालच में भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों को हारकर उनकी बात माननी ही पडती है. 
जब तक हम अपने देश में ही इन सर्वर और इन कम्पनियों का निर्माण नहीं कर लेते (विदेशी निवेश से अछूत रहकर) तब तक हमे इस व्यवस्था से दूर रहना चाहिए और तब तक जनता की शिक्षा और कैशलेस के लिए जमाई जाने वाली स्वदेशी व्यवस्था का विकास करना चाहिए जैसे नेटवर्क सिस्टम सॅटॅलाइट सिस्टम अदि..
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◆ मोदी ने आज के मन की बात के अपने वीडियो में जनता को टोपी पहनाने का प्रयास किया है, अगर मोदी जी इतने ही भले और इमानदार व्यक्ति हैं तो क्यों नहीं अपने पार्टी को दिए जा चुके फंडिंग एवं वित्तीय मदद जो उन्हें सभी तरह कि देशी-विदेशी-भ्रष्ट-इमानदार संस्थाओं एवं हस्तियों से मिले हैं, उसे ही सार्वजनिक क्यों नहीं कर देते?
क्या काले धन से मुक्ति कॅश-लेस समाज के निर्माण से ही हो जाएगी?
क्या जनता आज कार्ड उपुओग करना शुरू कर दे तो पहले ह चुके सभी काले धन को वापस लाया जा सकेगा?
और नहीं तो क्या मोदी एवं अन्य पार्टियों के नेता लोग, अपने आकाओं एवं अपने अपने मालिकों द्वारा अपने टट्टुओं को दिए गए जमीनों के आंकड़ों को सार्वजनिक करने का कोई सपना नहीं है?
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◆ क्या आप जानते हैं, कॅश-लेस समाज के निर्माण से आपके पास काल्पनिक धन होगा, 
आपको अपने ही धन के लिए संघर्ष करना होगा, यहाँ तक कि आपके आधार कार्ड के साथ अआपके बैंक्स के कार्ड जोड़े जा चुकने पर आपके खरीदी-बिक्री एवं अन्य लेन-देन पर नजर रखा जाना विदेशी-माफियाओं के लिए संभव होगा, जिससे वे आपको ट्रैक कर आपके खपत के अनुसार अपनी कंपनियों द्वारा उन सामानों का निर्यात आपके देश में कर सकें, इसके साथ साथ, ही आपने अपने आधार कार्ड से अपने जो भी डाटा या आंकड़ा लिंक किया होगा, वो सभी आंकड़ा आपके हर एक वित्तीय लेन देन पर उन माफियाओं के सामने आता रहेगा.
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◆ इसके साथ साथ, वे विदेशी माफियाएं ही आपके लिए तय करेंगी कि आपके कौन्कौं से कदम सरकार एवं उन माफियाओं के विरोध में हैं और कौन से नहीं हैं, इस तरह से आपके कार्ड एवं आपके बैंक से सम्बंधित धना को भी दंड-स्वरुप ब्लाक कर सकते हैं .
समय पड़ने पर क्या मालूम होगा कि मेरे जैसे सरकार विरोधी एवं माफिया-विरोधी लोगों को जरूरत पड़ने पार दवा इत्यादि भी मिलेगा या नहि .
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इसके साथ ही, प्राकृतिक आपदाओं एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक गड़बड़ी के वक्त भी ये कॅश-लेस सामाजिक व्यवस्था कार्य करना बंद कर देगा, जिससे माफियाओं के द्वारा संचालित किये जाने वाले दे्शों कि अर्थव्यवस्था को चौपट किया जा सके, 
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◆ कैश लेस समाज जिसके भविष्य में भारत में आने कि संभावना जताई जा रही है, उससे किसी को भी सबसे बड़ा खतरा ये होगा कि अगर उन मालिकों को पता चलेगा कि आप उनके खिलाफ कोई अभियान चला रहे हैं तो आपका पैसा अर्थात इलेक्ट्रॉनिक पैसा जो कुछ भी आपके कार्ड पे है, वो सब ब्लाक कर दिया जाएगा. 
ये किसको मालूम है कि, ऐसे लोगों को समय पे दवा इत्यादि मिलनी भी बंद कर दी जाए.
ये निर्णय वही मालिक माफिया करेगा कि आपके कौन कौन से कार्य उनके विरुद्ध हैं और कौन से कार्य उनके विरुद्ध नहीं हैं. 
दूसरा बड़ा समस्या है कि आपकी प्राइवेसी पर आपका कोई कण्ट्रोल नहीं रहेगा, आप क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कौन कौन सी कंपनी के सामानों के प्रयोग करते हैं, सारे के सारे आंकड़े उन माफियाओं के पास होंगे, 
आप जितनी बार अपने कार्ड से खरीदी करेंगे, उतनी बार आपका फोटो एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक डाटा जो भी आपके आधार कार्ड या इस जैसे अन्य पहचान-कार्ड्स पर आपने दर्ज करवाया होगा, वो सब आंकड़े उन माफियाओं के पास होंगे .
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◆ प्रधानमन्त्री जन-धन योजना के अंतर्गत सबका बैंक अकाउंट खुलवाना लोगों को ट्रैक करने के कैश-लेस समाज बनाने के योजना का एक हिस्सा ही है, जिसमे ये बाद में सबको अपना अपना बैंक अकाउंट आधार एवं अन्य पहचान-पत्रों के साथ जोड़ने को कहेंगे.
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◆ देश के अन्दर टैक्स-चोरों को पकडने का हमारे नेताओं का एक बहाना है, वे दो हजार के नोट तात्कालिक रूप से चला करके एवं पांच सौ के नए नोट चला के तथा हजार के नोट बंद करके टैक्स-चोरों को पकड़ने के एक काल्पनिक उपाय जो नोट-बंदी कि तथाकथित घटना से कतई संभव ही नहीं है, वे आका एवं माफिया यह देखना चाहते हैं कि अगर भारत में कॅश-लेस व्यवस्था लागू कर दी जाए तो यहाँ के व्यापार एवं जनसामान्य पर क्या असर पड़ेगा.
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◆ तात्कालिक नोट-बंदी एक प्रयोग है, लोगों को एवं यहाँ कि छोटी एवं स्माल एवं मध्यम स्केल इंडस्ट्री के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव को तलाश करने का एवं जनता कि प्रतिक्रियाओं को वाच करने का. 
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◆ अगर सही मायनों में हमारे देश के नेताओं को टैक्स-चोरों को पकड़ने कि कोई इच्छा होती ना, तो सबके जमीन के मालिकाना हक़ के आंकड़े एवं जमीन के खरीद-फरोक्त में उपयोग हुए धन को ट्रैक करने कि कोई योजना होती.
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◆ उन सभी परिवारों द्वारा मालिकाना हक़ वाले जमीनों का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाना चाहिए जिसे अंग्रेजों द्वारा पंद्रह अगस्त १९४७ को भारत छोड़ कर जाते समय यहाँ के करीब एक सौ पचास परिवारों को दिया गया था.
यहाँ पर जमीनों के मालिकाना हक़ के मामले में सबसे अधिक जमीन के ऊपर मालिकाना अधिकार मिशनरियों का है, उनके बाद वक्फ-बोर्ड और फिर ट्रस्ट्स एवं उसके बाद कंपनियों एवं अंत में व्यक्तिगत लोगों का जमीन के ऊपर मालिकाना हक़ कि मात्रा आती है.
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◆ अब जहाँ तक भारत के मंत्रालयों एवं यहाँ कि प्रशासकीय राजव्यवस्था में अधिकार वाले लोगों कि सीढियों का मामला है, उसमे सबसे ऊपर आते हैं विदेशी माफिया एवं वो सौ-डेढ़ सौ परिवार जिन्हें अंग्रेज अपना कमान भारत में सौंप के गए थे, भारत में अधिकतर राजनेता इन्हीं कि कठपुतलियां हैं, लेकिन कुछ कुछ अपवाद सवरूप भी हैं. , इसके बाद तीसरे स्थान पर हैं यहाँ के मंत्री. 
अब भारत में प्रशासनिक व्यवस्था में विदेशी माफियाओं का प्रभाव यहाँ तक आ चुका है कि यहाँ के मंत्री एवं विदेशी-चालित माफिया समुदाय सीधे सीधे उन विदेशी माफियोँ को ही रिपोर्ट करते हैं. 
हमारे देश के आई. ए. एस. , आई. पी. एस. वगैरह उन्हें ही मानते हैं एवं उनके द्वारा दिए हुए कार्यों का सम्पादन किया करते हैं.
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◆ मनमोहन सिंह सरकार के दौरान रिजर्व बैंक की लिबरलाइज्ड रिमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत विदेश में धन भेजने की सीमा सिर्फ 75,000 डाॅलर हुआ करती थी. मोदी जी ने सत्ता में आने के एक हफ्ते के अंदर यानी 03 जून 2014 को यह सीमा बढाकर 1,25,000 डाॅलर कर दी.
https://rbi.org.in/scripts/NotificationUser.aspx
◆ इसके बाद पिछले साल 26 मई 2015 को दोबारा LRS की सीमा बढाकर 2,50,000 डाॅलर कर दी गई.
https://rbi.org.in/scripts/NotificationUser.aspx
◆ यह फैसला हवाला कारोबार को कानूनी दर्जा देने जैसा था. इस फैसले के चलते जून 2015 से पिछले 11 महीने में 381 करोड़ डाॅलर यानी करीब 26,500 करोड़ रुपए की रकम विदेशी खातों में ट्रांसफर कर दी गई.
http://indianexpress.com/…/1-billion-was-sent-overseas-for…/
◆ सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह कि ये मनी ट्रांसफर उस वक़्त भी जारी रहा जब RBI 500 और 1000 के नोट बंद करने की तैयारी कर रहा था. RBI के पास आज भी इस बात का स्पष्ट जवाब नहीं है कि अचानक इतनी बड़ी रकम लोगों ने किसलिए विदेशों खातों में ट्रान्सफर की.
◆ LRS के तहत लोगों को कानूनी रूप से यह अधिकार है कि वे विदेश में रह रहे अपने किसी रिश्तेदार को जीवन यापन अथवा उपहार स्वरूप धन भेज सकते है. इसी कानून के तहत लोगों को विदेश में संपत्ति खरीदने या निवेश के लिए भी धन भेजने की सुविधा मिलती है.
◆ उपरोक्त आंकड़े जानने के बाद संदेह होता है कि जिस काले धन के बैंक में आने के नाम पर गरीब एवं मध्यम वर्ग को लंबी कतार में लगाया जा रहा है वो कहीं इससे पहले ही विदेश में स्थानांतरित तो नहीं किया जा चुका है? और अब सिर्फ जनता को मूर्ख बनाया जा रहा है?

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◆ अंग्रेजों ने बहुत सारी जमीन यहाँ के मिशनरियों को दिन हैं जो पूर्णतया नामी हैं, इन जमीनों का टाइटल सौ प्रतिशत क्लियर है , अर्थात बेनामी नहीं हैं एवं पूर्णतया white हैं, लेकिन ये जमीनें ब्लैक से भी अधिक ब्लैक हैं.
उन अंग्रेजों ने यहाँ से जाते जाते उस समय के तीनों बड़े नेताओं से एक क़ानून पास करवाया है कि १९४७ के पहले जिन जिन महोदयों एवं ट्रस्ट एवं संस्थाओं को जमीन मिली है, कोई भारत सरकार उनसे कोई प्रश्न नहीं करेगी एवं उनसे जमीन वापस नहीं मांगेगी.
ये क़ानून यहाँ के ट्रान्सफर of पॉवर अग्रीमेंट में भी है एवं संविधान में भी है. 
इस दुनिया में काले धन का उपयोग सोना खरीदने में सबसे ज्यादा नहीं होता, क्योंकि सोना खरीदने के कुछ समय बाद बेच दिया जाता है, क्यूंकि सोने का दाम उतना त्वरित गति से नहीं बढ़ता जितना कि जमीनों कि कीमतों में होता है. 
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◆ अब अगर जमीनों कि मालिकाना हकों का सारा ब्यौरा सार्वजनिक कर दिया जाता तो सबका धन का उपयोग जो जो जमीनों में हुआ है, सब का आंकड़ा बाहर आ जाता.
लेकिन इस देश के तमाम राजनैतिक भगतों ने, एवं किसीभी नेता तक ने इसकी कोई बात ही नहीं कि. 
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दो हजार के नोट के पेपर की गुणवत्ता से यही लगता है कि इस नोट को भी कुछ महीनो में बंद कर दिया जाएगा, लेकिन जिसे भी पैसा इकठ्ठा करना है, वो सौ पचास के नोटों में भी इकठ्ठा कर लेगा 
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◆ अब मान लीजिये कि जो स्मगलिंग करने वाले हैं, उनमे से कोई ये कहेगा कि मैं कुछ करोड़ का कॅश ले लूँगा, फिर उन धन का गोल्ड ले लूँगा और फिर लैंड वगैरह ले लूँगा. कोई ये भी कहेगा कि मैं पांच करोड़ के गोल्ड लेकर फिर उन धन से जमीन ले लूँगा.
मान लें कि हजार-पांचसौ के नोट कैंसिल होने कि खबर आई नहीं कि इन लोगों ने तुरंत ही अपने अपने धन को लैंड या सोने में इन्वेस्ट कर दिया. 
अब इन घटनाओं से सवाभाविक है कि देश के अन्दर गोल्ड का खपत बढेगा और गोल्ड का आयात करना पड़ेगा, और फिर देश का विदेशी-मुद्रा भंडार में कमी आएगी .
इन घटनाओं से ये तो पूरी दुनिया को पता चल ही गया है कि भारत देश की मुद्रा पर विश्वास नहीं किया जा सकता. 
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◆ फेक नोट के मुद्दे को सुलझाने के लिए सरकार एक सिस्टम या व्यवस्था ला सकती थी, जिसमे कि अगर दो बैंक्स या अधिक में एक ही नंबर के एक ही नोट पकडाए जाते हैं तो वे तुरंत ही आर बी आई को रिपोर्ट करेंगे एवं इसके ऊपर जांच प्रक्रिया चलाई जा सकेगी. 
ये प्रक्रिया नोट के सीरियल नंबर स्कैन मशीन से की जा सकती थी, इस छोटे से कम के लिए सरकार द्वारा इतनी लम्बी प्रक्रिया किये जाने कि कोई जरूरत नहीं थी. 
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देश में कॅश के लेन देन करने वाले जैसे कि अस्पतालों में कॅश चेक करने वाली मशीन लगवाने का आदेश भी मात्र एक गजेट नोटिफिकेशन के जरिये ला सकती थी, जिसका पालन तत्काल प्रभाव से किया जा सकता था. लेकिन हमारे सरकारों कि ऐसी कोई मंशा कभी रही ही नहीं कि वे काले नोट को बंद कर सकें एवं काले धन तथा जमीन के ब्यौरों को सार्वजनिक कर सकें. 
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◆◆अब देखते हैं कि इस देश में नोत्बंदी से विदेशी माफियाओं को किस तरह से फायदा होगा.
मान लीजिये कि सरकार ने सौ रूपया छापा जो पूरी तरह से white है, अब ये पैसा सरकार ने किसी को दे दिया , उस आदमी ने उस सौ रुपयों से किसी दुकानदार से कोई चीज़ खरीदी और उस दुकानदार ने इस आमदनी को सरकार को रिपोर्ट नहीं की, तो उसकी आमदनी ब्लैक हो गयी. 
ऐसा वाला आमदनी तब ब्लैक कहलायेगा जब कि इस काले धन वाले व्यक्ति कि आमदनी न्यूनतम टैक्स-फ्री आमदनी अर्थात ढाई लाख या तीन लाख से अधिक हो.
अब मान लीजिये इस दुकानदार ने किसी बिल्डर से कोई मकान खरीदा और तीस-चालीस प्रतिशत कॅश भी दे दिया, तो उस व्यक्ति का मकान भी ब्लैक ही हुआ. 
लेकिन ये धन सफ़ेद तब कहलायेगा जब कि उसने अपना मकान किसी को बेच दिया और फिर टैक्स भर दिया. तो इस तरह उसका ब्लैक मनी white बन गया. 
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इसीलिए मेरे कहने का अर्थ ये था कि सरकार को धन के पीछे भागने से बढ़िया होगा कि जमीन के मालिकाना हक़ के पीछे पड़े .
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◆सरकार हर साल बारह से पंद्रह प्रतिशत तक नए नोट छापती है. मान लीजिये कि मेरे पास मेरी आलमारी में सौ रुपये का ब्लैक मनी है तो इस तरह से एक साल बाद उसकी कीमत अपने आप से ही पांच-दस प्रतिशत कम हो जाती है. 
चूंकि ये सौ उपये का ब्लैक मनी मैं कहीं उप्प्योग नहीं करने वाला या मार्केट में घूमने तो नहीं वाला, अतः हर साल इसकी कीमत रखे रखाए ही पंचानवे और नब्बे प्रतिशत हो जाएगी. 
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अतः सरकारों को हर कीमत पर ब्लैक मनी के उत्पादन को ही रोकना होगा ना कि कॅश को बंद करके काले धन पे लगाम लगाया जा सकेगा. 
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◆ इस देश में सबसे ज्यादा ब्लैक मनी इनकम टक्स कि वजह से नहीं बल्कि जी एस टी, वैट एवं सेल्स टैक्स तथा सर्विस टैक्स की वजह से बनता है. 
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अगर व्यापारी समुदाय इतना टैक्स भरने ही लगे तो उसके पास कोई ख़ास आमदनी तो बचेगी ही नहीं, अतः सरकारों को इन टैक्सेज को ही समाप्त कर देना चाहिए. 
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◆इसी तरह से प्राइवेट कम्पनीज में भी कुछ कर्मचारियों के पास काले धन से उत्पन्न सैलरी भी होतीं हैं, जिसे घोस्ट सैलरी बोलते हैं, इन धन से पुनः काले धन से लैंड खरीदी जायेगी और लैंड कि ब्लैक वैल्यू बढती जायेगी.
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◆ अभी तात्कालिक रूप से जमीनों की कीमतों में गिरावट आयीं हैं, लेकिन जैसे जैसे मार्केट में ब्लैक मनी का उत्पादन पुनः बढेगा, जमीनों का दाम भी उसी अनुपात में बढेगा.
इससे सबसे बड़ा फायदा मारीशस रूट से आने वाली कम्पनीज को होगा जो घटे हुए दामों पे जमीन कह्रीद लेगी और पुनः बढे हुए दामों में बेच देगी.
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◆मान लीजिये भारत कि कोई कंपनी यहाँ ही लाभ कमाती है तो उसपर आयकर २५ % लगता है. अगर कोई भारत कि कंपनी जमीन के ऊपर लाभ कमाती है तो उसपर कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है ३०% . 
लेकिन यही अगर मारीशस कि कंपनी यहाँ भारत में लाभ कमाती है तो उसपर टैक्स लगता है ७ से १५% तक ही. 
७% टैक्स मारीशस रूट से आने वाले बैंक्स के लिए है. 
इसे वे लोग दिखाते ऐसे हैं कि किसी कंपनी ने मारीशस रूट से आने वाले बैंक्स से लोण लिया अब उस लोन का ब्याज डर इतना अधिक है कि लोन लेने वाली कंपनी का सारा लाभ उस ब्याज को ही चुकाने में चला जाएगा. 
तो इस तरह से मारीशस कि बैंक्स को अपने नए लाभ पर ही टैक्स देय होगा, ना कि कुल लाभ पर. 
अब अगर मारीशस की बैंक, वो सारा धन कंपनी को वापस कर देती है तो उसपर लाभ होगा शून्य. इसी तरह से फिजी कि कंपनी को भी टैक्स देय होगा शून्य प्रतिशत एवं फिजी कि कंपनी ओ देय होगा पांच से सात प्रतिशत .
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◆बड़ी कंपनियां यहाँ के बड़े बड़े मंत्रियों को खरीदती है, वो जमीन नहीं खरीदती एवं नीचे के स्टाफ को वही ऑपरेट क्र लेते हैं, क्योंकि वे बड़ी बड़ी कंपनियां अपने सारे कार्य स्पेशल इकनोमिक जॉन में करतीं हैं, जहाँ कोई लेबर लॉ अप्लाई नहीं होता, प्रोविडेंट फण्ड का रूल अप्लाई नहीं होता, एवं ऐसे बहुत सारे क़ानून हैं जो स्पेशल इकनोमिक जोन में अप्लाई ही नहीं होता . ऐसी कंपनियां जितना भी वैट पेय करेंगी या जी एस टी पे करेंगी वे तो उन्हें वापस मिलने ही वाला है.इस तरह उन्हें आयकर वाले भी परेशान नहीं करेंगे एवं अन्य अधिकारीगन भी परेशान नहीं करेंगे क्योंकि SEZ में आयकर कि भी माफ़ी है. 
कहीं कहीं जगहों पर मिनिमम अल्टरनेटिव टैक्स है दस प्रतिशत मात्र, जिसे MAT बोलते हैं. 
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◆◆ अतः जमीन सस्ती होने के बाद यहाँ बड़े पैमाने पर विदेशी कंपनियां आयेंगीं, और तब हम इन्हीं नेताओं द्वारा दिग्भ्रमित किये जायेंगे कि नोट ो्बंदी एवं विमुद्रीकरण के कारण से विदेशी कंपनियां आ रहीं हैं.
आपको यहाँ ये ध्यान रखना चाहिए कि विदेशी कंपनियां जहाँ जहाँ आतीं हैं, वहां वहां विदेशी कंपनियां अपने धर्म का प्रकार प्रसार करतीं हैं एवं अपे धर्म को फैलातीं हिन् हैं, आप इस दुनिया के देशों के इतिहास को उठा के देख लीजिये.
और इस दिशा में आर एस एस एवं यहाँ कि अन्य धार्मिक संस्थाएं कोई काम नहीं कर रहीं हैं, यहाँ के इन संस्थाओं के लोग विदेशी कंपनी के यहाँ आने को अपना आदर समझते हैं, मुझे उनकी मूर्खता पे हंसी एवं इनकी बुद्धि पे दया आती है. 
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◆अतः तमाम परेशानियां हमारे स्वदेशी उद्योगों को ही हैं, ना कि विदेशी कंपनियों को किसी प्रकार कि कोई परेशानी होने वाली है. 
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अतः नोट बंदी का विरोध करने वाले कोई काले धन के समर्थक नहीं हो जाते. 
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इस देश में भ्रष्टाचार को नोटों के डिनोमिनेशन से कोई मतलब नहीं है. अगर सिक्के भी चलाये जाएं तो भी भ्रष्टाचार तो होगा ही, जब तक कि इसे हटाने का कोई सार्थक पहल सरकारों द्वारा नहीं किया जाता. 
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भ्रष्टाचार को कम करने का तरीका है, राईट-टू-रिकॉल, पारदर्शी शिकायत प्रणाली, मल्टी इलेक्शन है. ज्यूरी प्रणाली है, वेल्थ टैक्स है . 
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★ समाधान ?
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निम्नलिखित प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली में जनता अपनी शिकायतों को मात्र एक एफिडेविट द्वारा माननीय प्रधानमंत्री जी की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से रख सकते हैं, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लाग-इन किये देख सकें, एवं मुद्दों से पार पाने के लिए कानूनी सुधार प्रक्रिया का प्रस्ताव रख सकें. एवं आप इसमें साबूतों को भी रखवा सकते हैं अगर आप चाहते हैं तो.
इस प्रक्रिया को ही पारदर्शी शिकायत प्रणाली कहते हैं, इसे राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने की मांग अपने सांसदों/विधायकों से कर आप उनपर नैतिक दबाव बना सकते हैं. 
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इसे पारदर्शी इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि इस व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना आसान हो जाएगा, जबकि अभी के मौजूदा व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना , उनके बारे में पता लगाना इतना आसान नहीं है.
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★★★★ आप सबको यहाँ पारदर्शी शिकायत प्रणाली एवं सभी सरकारी पदों पर राईट-टू-रिकॉल के कानूनों को गजेट में प्रकाशित करवा कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने को लेकर अपने अपने सांसदों, विधायकों, प्रधानमंत्री को अपना एक जनतांत्रिक आदेश भेजकर उनपर नैतिक दबाव बनाना चाहिए.
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इस क़ानून का ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी में www.Tinyurl.com/PrintTCP देखें.
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◆ ★★★आप अपने नेताओं को अपना जनतांत्रिक आदेश इस तरह भेजें, जैसे की- 
"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :- https://m.facebook.com/notes/830695397057800/ को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद " 
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◆ अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे: www.nocorruption.in
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◆★★★ जब अपराध जनता के प्रति हुआ हो ना, तो सजा देने का अधिकार भी हम जनता को ही रहना चाहिए, न कि जजों इत्यादि को, क्योंकि जज व्यवस्था में, जो वकीलों एवं अपराधियों के साथ सांठ गाँठ कर न्यायिक प्रक्रिया पूरी की पूरी तरह से उनके ही पक्ष में देते हैं. 
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◆★★★ जनता द्वारा न्याय किये जाने को ज्यूरी सिस्टम बोलते हैं,इसके अलावा ज्यूरी सिस्टम जिसमे सरकार एवं अन्य बड़े व्यक्तियों द्वारा अखबारों में यदा कदा प्रकाशित होने वाले ज्यूरी सिस्टम जिसमे कहा जाता है कि ये बिक जाते हैं, जबकि सच्चाई में हमारे संगठन द्वारा प्रस्तावित ज्यूरी सिस्टम में इसके सदस्यों को मतदाताओं की सूची से अचानक से ही न्याय का कार्य दिया जाता है, और वो सदस्य कई वर्षों में मात्र एक बार ही इस समिति का सदस्य बन सकता है, एवं अभियुक्तों व पीड़ितों से सच उगलवाने वाले सार्वजनिक नार्को टेस्ट, वेल्थ टैक्स, राईट-टू-रिकॉल एवं ऐसे ही ्अन्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें- https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
एवं अपने नेताओं को ऊपर बताए जा चुके तरीके से एक जनतांत्रिक आदेश भेजें.
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जय हिन्द.
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अधिक जानकारी के लिए देखिये- https://www.youtube.com/watch?v=pTPx_h_KQaA

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