देश में दो राज्यों के मध्य जल-विवाद का मुद्दा एवं राईट-टू-रिकॉल समूह की तरफ से प्रस्तावित समाधान:



देश में दो राज्यों के मध्य जल-विवाद का मुद्दा एवं राईट-टू-रिकॉल समूह की तरफ से प्रस्तावित समाधान:-
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कावेरी जल के मुद्दे पर बेंगलुरु में जनजीवन पर गहरा असर पड़ा है। मांड्या से शुरू हुआ विरोध राजधानी बेंगलुरु तक पहुंच चुका है. कन्नड़ संगठनों के बंद को कई राजनीतिक दल भी समर्थन दे रहे हैं। 
कर्नाटक के किसानों के भारी विरोध के बाद ऐहतियातन कृष्णाराजा सागर डैम को चार दिन के लिए बंद कर दिया गया था। इसके अलावा वृंदावन गार्डेन को भी बंद कर दिया गया था। कर्नाटक के किसानों का कहना है कि राज्य सरकार उनके प्रति संवेदनहीन बनी हुई है। एकतरफ मैसूर-मांड्या के इलाकों में सिंचाई की दिक्कत के साथ-साथ पीने की पानी की दिक्कत है। लेकिन कर्नाटक सरकार को इससे मतलब नहीं है। 
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को निर्देश दिया है कि तमिलनाडु के किसानों की दिक्कतें दूर करने के लिए वह अगले 10 दिन तमिलनाडु को 15000 क्यूसेक पानी छोड़े। इस निर्देश के बाद कावेरी पर विवाद गरमा गया जिसके मद्देनजर नौ सितंबर तक कृष्णराजसागर बांध के इर्दगिर्द निषेधाज्ञा लगा दी गई और वहां आगंतुकों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। 
जबकि कर्नाटक का कहना है कि इसके पास पीने व खेती करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है।
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राईट-टू-रिकॉल समूह की तरफ से जल संसाधनों का प्रति नागरिक स्तर पर स्वामित्व एवं जल विवादों के निस्तारण के लिए बुनियादी दिशा निर्देश और पंजाब हरियाणा जल विवाद तथा ऐसे ही अन्य झगड़ो के लिए प्रस्तावित समाधान:-
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मान लीजिये कि किसी गाँव में एक तालाब है जिसमे वर्षा के माध्यम से 1 करोड़ लीटर जल की आवक होती है। यदि इस गाँव में 1000 नागरिक रहते है तो प्रत्येक नागरिक को कितना पानी मिलना चाहिए ? हम रिकालिट्स का मानना है कि प्रत्येक नागरिक को 1 करोड़/1000 = 10 हजार लीटर पानी प्रति वर्ष मिलना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को अधिक पानी कि आवश्यकता है तो उसे ऐसे व्यक्ति से पानी खरीदना होगा जिसे कम पानी कि आवश्यकता है। 
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तो हम रिकालिस्ट्स के पास एक सवाल का सीधा जवाब है लेकिन साथ ही हम जल विवाद से जुड़े बड़े प्रश्न और उसके समाधान से जूझ रहे है ---
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मान लीजिये कि 1000 कि आबादी के गाँव में एक जलाशय है। यह गाँव 1 लाख की आबादी वाली एक तहसील में स्थित है, तथा यह तहसील 10 लाख कि आबादी के एक जिले और यह जिला 5 करोड़ कि आबादी के एक राज्य और यह राज्य 125 करोड़ कि आबादी वाले के देश का हिस्सा है। अब मान लीजिये कि इस जलाशय में वर्षा से 100 करोड़ लीटर जल एकत्र होता है तो किस व्यक्ति को इस जलाशय के पानी में कितना हिस्सा मिलेगा ?
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इस प्रश्न के कई जवाब हो सकते है। एक जवाब यह भी है कि इस जलाशय के पानी पर गाँव के सभी 1000 व्यक्तियों का अधिकार है, और यदि गाँव के बाहर के अन्य किसी भी व्यक्ति को पानी चाहिए तो उसे गाँव के व्यक्तियों के हिस्से से पानी ख़रीदना होगा। दूसरा जवाब यह भी हो सकता है कि इस जलाशय के पानी पर देश के सभी नागरिको का बराबर का अधिकार है। 
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राईट टू रिकाल ग्रुप का मानना है कि देश के प्राकृतिक संसाधनों जैसे कोयला, खनिज, तेल, स्पेक्ट्रम तथा सरकारी भूखंडो से प्राप्त होने वाली आमदनी पर देश के सभी नागरिको का बराबर अधिकार होना चाहिए। हालांकि किसी राज्य या जिले के मतदाताओं को इस हिस्से में 10 से 30 प्रतिशत तक अतिरिक्त दिया जा सकता है। इसका नैतिक आधार यह है कि --- भारत में यह प्राकृतिक संसाधन अब तक इसीलिए बचे हुए है क्योंकि भारत की सेना आक्रमणकारियों से इनकी रक्षा कर रही है। और क्योंकि भारत की सेना चलाने के लिए जवानो और जिस धन कि आवश्यकता होती है उसमे पूरे देश के नागरिको का योगदान है, अत: भारत के सभी नागरिको का इन संसाधनों पर अधिकार है। और राईट टू रिकॉल ग्रुप के ज्यादातर कार्यकर्ता इस बात से सहमत है। जब राईट टू रिकॉल ग्रुप द्वारा प्रस्तावित MRCM क़ानून गेजेट में प्रकाशित किया जाएगा तब परिस्थिति तथा क्षेत्र के आधार पर इस ड्राफ्ट में पर्याप्त संशोधन किये जा सकेंगे... । 

जहां तक राज्य/जिलो में स्थित जल संसाधनों के बंटवारे का प्रश्न है, हमारे द्वारा प्रस्तावित प्रक्रिया इस प्रकार है --
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यदि यह प्रस्तावित किया जाता है कि देश के सभी नागरिको का देश में स्थित सभी नदियों/झीलों आदि जल संसाधनों पर समान अधिकार होगा, तो क्षेत्रीयता के आधार पर इस प्रस्ताव को विरोध का सामना करना पड़ सकता है। जिन क्षेत्रो में भरपूर जल संसाधन है वे निश्चय ही इस प्रस्ताव का तीव्र विरोध करेंगे। 
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जल संसाधनों के बटवारे के लिए अन्तराष्ट्रीय नियमावली इस प्रकार है --- यदि कोई नदी दो देशो से गुजरती है तथा अमुक नदी कि लम्बाई इन दो देशो में L1 तथा L2 है तो प्रत्येक देश का इसमें हिस्सा L1 / (L1 + L2) तथा L2 / (L1 + L2) होगा। लेकिन किसी देश में राज्यों के बीच जल विभाजन के लिए इस फार्मूले को कठोरता से लागू नही किया जा सकता। क्यों ? मान लीजिये कि एक नदी ‘R’ दो राज्यों S1 और S2 से गुजरती है तथा इसकी लम्बाई इन राज्यों में L1 और L2 है। यदि हम इस पानी का बंटवारा L1/(L1+L2) तथा L2 /(L1+L2) के हिसाब से करते है तथा अन्य राज्यों को इसमें से पानी नही देते है तो जल्दी ही अमुक राज्यों के वे जिले ज्यादा पानी प्राप्त करने के लिए अलग राज्य कि मांग करने लगेंगे जिन जिलो में से अमुक नदी बहती है। और इसे किसी भी तरह से रोका नही जा सकेगा।

उदाहरण के लिए यदि पंजाब यह कहता है कि चूँकि सतलुज सिर्फ पंजाब में ही बहती है हरियाणा में नही, इसीलिए सतलुज के सम्पूर्ण जल पर सिर्फ पंजाब का ही अधिकार है अत: इसमें से हरियाणा को पानी कि एक बूँद भी नही दी जानी चाहिए, तो कल पंजाब के वे जिले जिनमे से सतलुज बहती है अधिक जल पाने के लिए अलग राज्य कि मांग करेंगे। क्या ऐसी स्थिति में पंजाब के शेष नागरिक इस मांग को मान लेंगे। और वैसे भी एक समय में हरियाणा पंजाब का ही एक हिस्सा था। हरियाणा 1950 में पंजाब से अलग होकर पृथक राज्य के रूप में अस्तित्व में आया है। 
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दूसरे शब्दों में, देश की सीमाओं में स्पष्ट विभेदन किया जा सकता है लेकिन देश के भीतर स्थित राज्यों के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से ऐसा किया जाना व्यवहारिक नही है। दरअसल देश में राज्य एक प्रशासनिक इकाई मात्र है। इसीलिए मेरा आग्रह है कि जल तथा खनिज संसाधनों पर ‘प्रति नागरिक’ स्वामित्व का निर्धारण करने के लिए कार्यकर्ताओं को राज्य/जिले/तहसील आदि इकाइयों को आधार नहीं बनाना चाहिए।
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तब हम इस विवाद का निपटारा किस आधार पर करेंगे कि हरियाणा को पंजाब से कितना पानी दिया जाना चाहिए ? और देश के अन्य ऐसे ही जल विवादों के निस्तारण के लिए कार्यकर्ताओं को किन दिशा निर्देशों का पालन करना चाहिए ?
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इस सम्बन्ध में हम दो प्रकार के दिशा निर्देशों का प्रस्ताव कर रहे है --
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1. देश के सभी जिलो और राज्यों में स्थित सभी जल संसाधनों का भारत के सभी नागरिको में बराबर विभाजन किया जाए। इससे सभी नागरिको का एक कोटा बन जाएगा, और नागरिक जिन्हें कम जल कि आवश्यकता है, वे अपने कोटे में से अतिरिक्त जल उन व्यक्तियों को हस्तांतरित कर सकेंगे जो या तो अमुक जलाशय के नजदीक है या फिर अमुक जलाशय से वे नहर आदि से जुड़े हुए है। 
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2. उपरोक्त प्रस्ताव मामलों के अंतिम रूप से निस्तारण के लिए है। लेकिन निकट भविष्य में ऐसा किया जाना संभव नही है। अत: मौजूदा स्थिति में समाधान के लिए हमारे द्वारा एक अन्य प्रस्तावित प्रक्रिया इस प्रकार है -- 
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(2a) मान लीजिये कि भारत में 85 करोड़ मतदाता V1 से VN है। यहाँ N = 85,00,00,000 है। 
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(2b) एक जलाशय है जिसकी जल भराव क्षमता W लीटर है। 
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(2c) इस जलाशय से मतदाताओं कि दूरी D1 से DN है। (N = 85 करोड़)

(2d) जलाशय से दूरी को हम इस तरह से निर्धारित करने का प्रस्ताव करते है --
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अगर दूरी 10 किलोमीटर से कम है तो निकटता = 1 अंक होगी।

यदि दूरी > 10 km से अधिक और 20 किमी से कम है तो निकटता का मान = 0.99 अंक होगा।
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यदि दूरी 20 किमी से ज्यादा और 30 किमी से कम है तो निकटता = 0.98 अंक होगी।
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यदि दूरी 900 किमी से ज्यादा और 910 किमी से ज्यादा होगी तो निकटता = 0.10 होगी।
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यदि दूरी 990 किमी से अधिक और 1000 किमी से कम होगी तो निकटता का मान = 0.01 होगा।
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यदि दूरी 1000 किलोमीटर से अधिक होगी तो निकटता का मान = शून्य होगा।
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तो इस आधार पर भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए निकटता का मान C1 से CN होगा, जहां N = 85 करोड़ है।
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(2d) इस आधार पर प्रत्येक नागरिक के स्वामित्व की निकटता C = W*C / (C1 + C2 + ...+ CN) होगी। 
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स्पष्टीकरण --- 
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एक सामान्य उदाहरण से इसे समझते है। मान लीजिये कि किसी जगह पर व्यक्तियों की संख्या 10 है। (p1 से p2)
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P1 जलाशय से 1 किमी दूर है अत: उसकी जलाशय से निकटता c1 = 1 होगी। 
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P2 की दूरी 2 किमी है, अत: उसकी निकटता c2 = 1 होगी।
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p3 जलाशय से 11 किमी दूर है, अत: उसकी निकटता का मान c3 = 0.99 होगा।
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इसी प्रकार मान लीजिये कि अन्य व्यक्तियों कि निकटता का मान भी इस प्रकार है -- C4 = 0.80, C5 = 0.70, C6 = 0.60, C7 = 0.60 , C8 = 0.50 , C9 = 0.40 , C10 = 0.30 , C11 = 0.20 , C12 = 0.10 ।
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चूंकि P13 से P15 की जलाशय से दूरी 1000 किलोमीटर है अत: उनमे से प्रत्येक की निकटता का मान शून्य होगा।
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इस स्थिति में सभी व्यक्तियों कि निकटता का योग इस प्रकार होगा -- (1 + 1 + 0.99 + 0.80 + 0.70 + ... + 0.10) = 6.59
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अत: P1 का हिस्सा = 1/6.9 , P2 का = 1/6.9, P3 का = 0.99/6.9 होगा। तथा अन्य व्यक्तियों का कोटा भी इसी प्रकार से निर्धारित किया जाएगा।
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दूसरे शब्दों में, जैसे जैसे जलाशय से व्यक्तियों कि दूरी घटेगी वैसे वैसे वैसे उनका हिस्सा घटता जाएगा।
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जब एक बार किसी जलाशय/नदी आदि में व्यक्तियों का कोटा तय हो जाएगा तो व्यक्ति अपनी आवश्यकता अनुसार अपने हिस्से के पानी के कोटे का हस्तान्तरण अन्य व्यक्ति को नहर/पाइप आदि के जरिये कर सकता है। क्रेता खरीदे गए पानी के आधार पर विक्रेता को भुगतान करेगा।
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मैं सभी से आग्रह करता हूँ कि वे जल संसाधनों के प्रति नागरिक स्वामित्व आधार पर उनके दिशा निर्देशों के प्रस्ताव प्रस्तुत करें। या वे चाहे तो जिला/राज्य स्तर को आधार बनाकर भी स्वामित्व अधिकारों के निर्धारण के लिए रूपरेखा प्रस्तावित कर सकते है। 
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इस मामले में मौजूदा हालात हौसला तोड़ने वाले है। सभी राज्य या तो अपनी सीमाओ के आधार पर फैसले ले रहे है या सुप्रीम कोर्ट के के आदेशो के भरोसे पर है या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन कर रहे है या फिर अपनी सुविधा के आधार पर सिद्धांत गढ़ ले रहे है। पानी के उपयोग कि सीमा निर्धारण के मामले में पंजाब भौगोलिक सीमाओं के सिद्धांत का हवाला दे रहा है जबकि हरियाणा सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बना रहा है !!! क्या हरियाणा सुप्रीम कोर्ट के ऐसे फैसले की पालना करेगा जो आदेश हरियाणा के आधे पानी को दिल्ली को देने का आदेश देता है ? और सुप्रीम कोर्ट के आदेशो के सम्बन्ध में सुविधानुसार चयनात्मक सिद्धांत का पालन करने का कोई दायरा नहीं है।
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राजनेता अपने भ्रष्टाचार को ढकने के लिए जल विवादों का इस्तेमाल ढाल के बतौर कर रहे है। उदाहरण के लिए प्रकाश सिंह बादल ने ‘पंजाब द्वारा हरियाणा को पानी की एक बूँद भी नही दी जानी चाहिए’ विषय पर बहुत ही भावुक भाषण दिया !! और यही बादल भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए है, तथा साथ ही वे भू और ड्रग माफिया भी है। मोदी साहेब के पास इस समस्या से निपटने का अपना तरीका है। और वह तरीका क्या है ? मोदी साहेब ने एक तरफ पंजाब के बीजेपी विधायको को बादल के दावे का समर्थन करने को कहा और दूसरी तरफ हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर को बादल के फैसले के खिलाफ बोलने का आदेश दिया !!!
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देश में अनिवार्य रूप से मीटर लगाने का कानून लागू करके और सस्ती बिजली का उत्पादन करके पानी की समस्या को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। यदि भारत राईट टू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टेक्स आदि कानूनों को लागू कर देता है तो भारत कि निर्माण इकाइयों कि कार्यकुशलता में भी अमेरिका के उद्योगों कि तरह वृद्धि होगी, जिससे भारत कि स्थानीय स्वदेशी इकाइयां सस्ते और बेहतर सोलर पेनल्स का उत्पादन कर सकेगी। यदि बिजली सस्ती हो जाती है तो पीने के पानी को छोड़कर घरेलू/औद्योगिक जरूरतों के लिए जल शोधन करना बेहद सस्ता हो जाएगा। कृषि के लिए तब भी पानी कि आवश्यकता होगी। कृषि क्षेत्र के लिए आवश्यक पानी कि मात्रा में कमी लाने के लिए ज्वार/बाजरा जैसी फसलो को प्रोत्साहित और गेंहू/चावल कि खेती को हतोत्साहित किया जा सकता है। इसके अलावा मांस पर से सारे अनुदान हटाकर और मांस/दुग्ध/खाद्य पदार्थो के निर्यात पर रोक लगाकर भी पानी कि कमी कि समस्या को से निपटा जा सकता है। चूंकि भारत पानी की कमी से जूझता रहा है तथा निकट भविष्य में भी हालात बदलने वाले नही है, अत: यह आवश्यक है कि हम जल संसाधनों के प्रति नागरिक स्वामित्व कि निति की और कदम बढाए। 
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इस बारे में एक तरह के समाधान का प्रस्ताव हमने किया है --- “जैसे जैसे जल स्त्रोत से व्यक्ति की दूरी बढती जायेगी उसके स्वामित्व की मात्रा में कमी आती जायेगी, तथा 1000 किमी पर यह स्वामित्व शून्य हो जाएगा”। इस सम्बन्ध में अन्य व्यक्तियों/समूहों/पार्टियों को भी अपने समाधान कि प्रक्रिया रखनी चाहिए। 
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आप सबको यहाँ पारदर्शी शिकायत प्रणाली एवं सभी सरकारी पदों पर राईट-टू-रिकॉल के कानूनों को गजेट में प्रकाशित करवा कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने को लेकर अपने अपने सांसदों, विधायकों, प्रधानमंत्री को अपना एक जनतांत्रिक आदेश भेजकर उनपर नैतिक दबाव बनाना चाहिए.
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वर्तमान के संसदीय लोकतंत्र की प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शी शिकायत प्रणाली नहीं है, जिसमे जनता को सुनने वाला कोई नहीं है, एवं प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली में जनता अपनी शिकायतों को मात्र एक एफिडेविट द्वारा माननीय प्रधानमंत्री जी की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से रख सकते हैं, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लाग-इन किये देख सकें, एवं मुद्दों से पार पाने के लिए कानूनी सुधार प्रक्रिया का प्रस्ताव रख सकें. एवं आप इसमें साबूतों को भी रखवा सकते हैं अगर आप चाहते हैं तो.
इस प्रक्रिया को ही पारदर्शी शिकायत प्रणाली कहते हैं, इसे राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने की मांग अपने सांसदों/विधायकों से कर आप उनपर नैतिक दबाव बना सकते हैं. 
इसे पारदर्शी इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि इस व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना आसान हो जाएगा, जबकि अभी के मौजूदा व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना , उनके बारे में पता लगाना इतना आसान नहीं है.
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इस क़ानून का ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी मेंwww.Tinyurl.com/PrintTCP देखें.
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आपअपने नेताओं को अपना जनतांत्रिक आदेश इस तरह भेजें, जैसे की- 
"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :-https://m.facebook.com/notes/830695397057800/ को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद " 
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अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे:www.nocorruption.in
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जब अपराध जनता के प्रति हुआ हो ना, तो सजा देने का अधिकार भी हम जनता को ही रहना चाहिए, न कि जजों इत्यादि को, क्योंकि जज व्यवस्था में, जो वकीलों एवं अपराधियों के साथ सांठ गाँठ कर न्यायिक प्रक्रिया पूरी की पूरी तरह से उनके ही पक्ष में देते हैं. 
जनता द्वारा न्याय किये जाने को ज्यूरी सिस्टम बोलते हैं,इसके अलावा ज्यूरी सिस्टम जिसमे सरकार एवं अन्य बड़े व्यक्तियों द्वारा अखबारों में यदा कदा प्रकाशित होने वाले ज्यूरी सिस्टम जिसमे कहा जाता है कि ये बिक जाते हैं, जबकि सच्चाई में हमारे संगठन द्वारा प्रस्तावित ज्यूरी सिस्टम में इसके सदस्यों को मतदाताओं की सूची से अचानक से ही न्याय का कार्य दिया जाता है, और वो सदस्य कई वर्षों में मात्र एक बार ही इस समिति का सदस्य बन सकता है, एवं अभियुक्तों व पीड़ितों से सच उगलवाने वाले सार्वजनिक नार्को टेस्ट, वेल्थ टैक्स, राईट-टू-रिकॉल एवं ऐसे ही ्अन्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
.एवं अपने नेताओं को ऊपर बताए जा चुके तरीके से एक जनतांत्रिक आदेश भेजें.
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जय हिन्द.

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