पिता का पत्र बेटियों के नाम से अधिक मां का पत्र बेटों के नाम लिखे जाने की ज़रूरत है
तकनीकी रूप से अमिताभ बच्चन को अपनी नातिन और पोती के नाम इस पत्र को लिखने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती अगर लड़कों की मा-पिता अपने बेटों को पत्र लिख कर यह समझाने और संदेश देने की कोशिश करते कि लड़कों को लड़कियों के प्रति नज़रिया बदलना चाहिए।
वैसे लिंग आधारित भेदभाव से भरे इस समाज में पिता का पत्र बेटियों के नाम से अधिक मां का पत्र बेटों के नाम लिखे जाने की ज़रूरत है।
उन्हें यह समझाए जाने की जरूरत ज्यादा है कि घर से अकेली बाहर निकलती हुई किसी बेटी को अगर उसका पिता चिंतित निगाहों से देखता है, तो यह तुम्हारे मुंह पर थप्पड़ है, एक मां की शिक्षा पर संदेह है। तुम लड़कियों को मान दोगे, तो पिता बेटियों को चिंता भरा पत्र नहीं लिखेगा। वो ऐसा नहीं लिखेगा, तो तुम्हारी मां का मान बढ़ेगा।
.
कायदे से मा-पिता को अपने-अपने बेटों को यह पत्र लिखना चाहिए कि लड़कियों के प्रति उनके मन में प्यार हो, सम्मान हो।
.
बेटियां अपनी मर्ज़ी से स्कर्ट पहनें, उसकी लंबाई तय करें, यह सब उन्हें समझाने की ज़रूरत ही इसलिए पड़ती है क्योंकि मांएं अपने बेटों को यह पाठ नहीं पढ़ातीं कि एक लड़की की मर्ज़ी भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है, जितनी तुम्हारी। उसे भी बराबरी से जीने का हक है।
.
दुनिया में जिसने भी लड़का-लड़की के भेद की शुरुआत की होगी, वो इस संसार में सबसे बड़ा अलगावादी रहा होगा।
हमने लिंग के आधार पर समाज को बांटा, यह शायद हमारी सबसे बड़ी भूल थी। उसी भूल का ख़ामियाज़ा है कि आज हमें लड़कियों को जीने का सलीका और तरीका सीखाना पड़ रहा है, जबकि सीखाने की दरकार लड़कों को हैं।
.
उन्हें यह समझाने की ज़रूरत है कि प्रिय बेटों, तुम जैसे-जैसे बड़े होते जाओगे, तुम लड़की को खुद से कमज़ोर समझने की गलती करते चले जाओगे। तुम उन्हें भोग की वस्तु समझने की गलती करते जाओगे। तुम उन पर अपनी मर्ज़ी थोपने की कोशिश करते जाओगे। तुम उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की जगह खुद पर निर्भर बनाने की कोशिश करते नज़र आओगे। पर प्रिय बेटों, तुम ऐसा मत करना। तुम लिंग के आधार पर बंटी इस दुनिया में खुद को अलग मत समझना। तुम समझना कि एक लड़की जो तुम्हारी मां है, तुम्हारी बहन है, तुम्हारी पत्नी है, वो भी मनुष्य है। और मनुष्य-मनुष्य में भेद मत करना। तुम ईश्वर को मानो या न मानो, पर मानवीय रिश्तों को ज़रुर मानना। तुम मानना कि जैसे तुम्हें किसी की दखलअंदाज़ी नहीं पंसद, वैसे ही किसी को भी दखलअंदाज़ी नहीं पसंद। सबको अपनी मर्ज़ी और आज़ादी से जीने का हक है। तुम अपनी ज़िंदगी में आने वाली महिलाओं को यह हक देना। तुम उनकी छोटी और बड़ी स्कर्ट की ओर मत देखना। तुम जैसे अपनी मर्ज़ी से जीते हो, वैसे ही उनको उनकी मर्ज़ी से जीने दोगे, तो अमिताभ बच्चन को, या दुनिया में किसी पिता को, अपनी बेटियों को पत्र लिख कर इस तरह ज़िंदगी जीने की नसीहत नहीं देनी होगी। प्रिय बेटों, इस नसीहत की ज़रूरत ही उस पिता को इसलिए पड़ती है क्योंकि वो जानता है कि उसकी बेटियां एक बंटे हुए समाज़ में बड़ी हो रही हैं। स्त्री और पुरुष के बीच बंटा यह समाज ही लड़का और लड़की में भेद करता है। इसलिए मेरे बेटों, मैं तुम्हारी मां, तुम्हें यह बताना चाहती हूं, समझाना चाहती हूं कि तुम जीओ और जीने दो के सिद्धांत को समझना। तुम उन्हें उनकी मर्ज़ी से जीने देना। सबको अपनी मर्ज़ी से जीने का हक है।
प्रिय बेटों, अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो याद रखना कि मैं यही समझूंगी कि मेरी दी शिक्षा में कोई कमी रह गई है। तुमने सुना होगा कि वही पुरुष एक महिला से राजुकमारी की तरह व्यवहार कर सकते हैं, जो खुद किसी रानी की गोद में पले हों। अगर मैंने तुम्हें एक राजकुमार की तरह पाला है, तो तुम्हें भी हर लड़की के साथ उतनी ही इज़्जत से पेश आना चाहिए।
क्योंकि तुम्हारी शिक्षा में मेरी ओर से कमी रह गई, इसीलिए एक बेटी के पिता का चिंतित होना जायज़ है। बेटियों को पत्र लिख कर उसे समझाना ही पड़ेगा कि तुम इस ज़िंदगी को ऐसे जीना, वैसे जीना।
मेरे बेटों, तुम यह मत भूलना कि घर से अकेली बाहर निकलती हुई किसी बेटी को अगर उसका पिता चिंतित निगाहों से देखता है, तो यह तुम्हारे मुंह पर थप्पड़ है, एक मां की शिक्षा पर संदेह है। तुम लड़कियों को मान दोगे, तो पिता बेटियों को चिंता भरा पत्र नहीं लिखेगा। वो ऐसा नहीं लिखेगा, तो तुम्हारी मां का मान बढ़ेगा।
.
सचमुच, पिता का पत्र बेटियों के नाम से अधिक मां का पत्र बेटों के नाम लिखे जाने की ज़रूरत है।
वैसे लिंग आधारित भेदभाव से भरे इस समाज में पिता का पत्र बेटियों के नाम से अधिक मां का पत्र बेटों के नाम लिखे जाने की ज़रूरत है।
उन्हें यह समझाए जाने की जरूरत ज्यादा है कि घर से अकेली बाहर निकलती हुई किसी बेटी को अगर उसका पिता चिंतित निगाहों से देखता है, तो यह तुम्हारे मुंह पर थप्पड़ है, एक मां की शिक्षा पर संदेह है। तुम लड़कियों को मान दोगे, तो पिता बेटियों को चिंता भरा पत्र नहीं लिखेगा। वो ऐसा नहीं लिखेगा, तो तुम्हारी मां का मान बढ़ेगा।
.
कायदे से मा-पिता को अपने-अपने बेटों को यह पत्र लिखना चाहिए कि लड़कियों के प्रति उनके मन में प्यार हो, सम्मान हो।
.
बेटियां अपनी मर्ज़ी से स्कर्ट पहनें, उसकी लंबाई तय करें, यह सब उन्हें समझाने की ज़रूरत ही इसलिए पड़ती है क्योंकि मांएं अपने बेटों को यह पाठ नहीं पढ़ातीं कि एक लड़की की मर्ज़ी भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है, जितनी तुम्हारी। उसे भी बराबरी से जीने का हक है।
.
दुनिया में जिसने भी लड़का-लड़की के भेद की शुरुआत की होगी, वो इस संसार में सबसे बड़ा अलगावादी रहा होगा।
हमने लिंग के आधार पर समाज को बांटा, यह शायद हमारी सबसे बड़ी भूल थी। उसी भूल का ख़ामियाज़ा है कि आज हमें लड़कियों को जीने का सलीका और तरीका सीखाना पड़ रहा है, जबकि सीखाने की दरकार लड़कों को हैं।
.
उन्हें यह समझाने की ज़रूरत है कि प्रिय बेटों, तुम जैसे-जैसे बड़े होते जाओगे, तुम लड़की को खुद से कमज़ोर समझने की गलती करते चले जाओगे। तुम उन्हें भोग की वस्तु समझने की गलती करते जाओगे। तुम उन पर अपनी मर्ज़ी थोपने की कोशिश करते जाओगे। तुम उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की जगह खुद पर निर्भर बनाने की कोशिश करते नज़र आओगे। पर प्रिय बेटों, तुम ऐसा मत करना। तुम लिंग के आधार पर बंटी इस दुनिया में खुद को अलग मत समझना। तुम समझना कि एक लड़की जो तुम्हारी मां है, तुम्हारी बहन है, तुम्हारी पत्नी है, वो भी मनुष्य है। और मनुष्य-मनुष्य में भेद मत करना। तुम ईश्वर को मानो या न मानो, पर मानवीय रिश्तों को ज़रुर मानना। तुम मानना कि जैसे तुम्हें किसी की दखलअंदाज़ी नहीं पंसद, वैसे ही किसी को भी दखलअंदाज़ी नहीं पसंद। सबको अपनी मर्ज़ी और आज़ादी से जीने का हक है। तुम अपनी ज़िंदगी में आने वाली महिलाओं को यह हक देना। तुम उनकी छोटी और बड़ी स्कर्ट की ओर मत देखना। तुम जैसे अपनी मर्ज़ी से जीते हो, वैसे ही उनको उनकी मर्ज़ी से जीने दोगे, तो अमिताभ बच्चन को, या दुनिया में किसी पिता को, अपनी बेटियों को पत्र लिख कर इस तरह ज़िंदगी जीने की नसीहत नहीं देनी होगी। प्रिय बेटों, इस नसीहत की ज़रूरत ही उस पिता को इसलिए पड़ती है क्योंकि वो जानता है कि उसकी बेटियां एक बंटे हुए समाज़ में बड़ी हो रही हैं। स्त्री और पुरुष के बीच बंटा यह समाज ही लड़का और लड़की में भेद करता है। इसलिए मेरे बेटों, मैं तुम्हारी मां, तुम्हें यह बताना चाहती हूं, समझाना चाहती हूं कि तुम जीओ और जीने दो के सिद्धांत को समझना। तुम उन्हें उनकी मर्ज़ी से जीने देना। सबको अपनी मर्ज़ी से जीने का हक है।
प्रिय बेटों, अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो याद रखना कि मैं यही समझूंगी कि मेरी दी शिक्षा में कोई कमी रह गई है। तुमने सुना होगा कि वही पुरुष एक महिला से राजुकमारी की तरह व्यवहार कर सकते हैं, जो खुद किसी रानी की गोद में पले हों। अगर मैंने तुम्हें एक राजकुमार की तरह पाला है, तो तुम्हें भी हर लड़की के साथ उतनी ही इज़्जत से पेश आना चाहिए।
क्योंकि तुम्हारी शिक्षा में मेरी ओर से कमी रह गई, इसीलिए एक बेटी के पिता का चिंतित होना जायज़ है। बेटियों को पत्र लिख कर उसे समझाना ही पड़ेगा कि तुम इस ज़िंदगी को ऐसे जीना, वैसे जीना।
मेरे बेटों, तुम यह मत भूलना कि घर से अकेली बाहर निकलती हुई किसी बेटी को अगर उसका पिता चिंतित निगाहों से देखता है, तो यह तुम्हारे मुंह पर थप्पड़ है, एक मां की शिक्षा पर संदेह है। तुम लड़कियों को मान दोगे, तो पिता बेटियों को चिंता भरा पत्र नहीं लिखेगा। वो ऐसा नहीं लिखेगा, तो तुम्हारी मां का मान बढ़ेगा।
.
सचमुच, पिता का पत्र बेटियों के नाम से अधिक मां का पत्र बेटों के नाम लिखे जाने की ज़रूरत है।
Comments
Post a Comment
कानूनों से फर्क पङता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था कैसी है जानना हो तो पता लगाओ की उस देश की न्याय प्रणाली कैसी है. देश में आर्थिक सामाजिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था कड़ी न हो.
राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक-क्षमता में, अगर कोई देश अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उस देश का धर्म, न्याय, संस्कृति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अनुसंधान व जनता तथा प्राकृतिक संसाधन कुछ भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
वही राष्ट्र सेक्युलर होता है, जो अन्य देशों पर हर हाल में निर्भर हो.