सरकारी नियमों को दुरुस्त करने के स्थान पर संपत्ति को विदेशी कंपनियों को सौंपना आवश्यक है क्या?

सरकार ने थोड़े दिन पहले जापान व् जर्मनी के साथ जो समझौता किया था, उसके लिए सरकार भारतीय रेल का किराया बढ़ा रही हैं, क्योकि जबसे सरकार ने रेलवे ट्रैक बेचे है, तब से धीरे धीरे भारतीय रेल का किराया बढ़ा कर , सुविधा घटा कर एक दिन भारतीय रेल की दुर्दशा ऐसी बना दी जाएगी कि जनता स्वयं आगे आकर कहेगी कि इस भारतीय रेल के किराये में तो वो बुलेट ट्रेन ही अच्छी है जो लगभग समान किराये में अच्छी सुविधा व् समय पर पंहुचा रही है.
जिससे सरकार को भारतीय रेल को बंद करने में आसानी होगी.
इससे नागरिकों को एवं देश की अर्थ-व्यवस्था को सब तरफ से हानि ही हानि है. लाभ वाले रुट विदेशियों को चले जायेंगे एवं इससे हमारे पास आने वाली आय भी समाप्त हो जाएगी, साथ में किराया भी अधिक देना पड़ेगा एवं रुपये का मूल्य भी गिरता रहेगा, फलतः देश में महंगाई और बढ़ेगी एवं देश की अर्थव्यवस्था निरंतर कमजोर होती चली जाएगी. हानि वाले रुट हमारे पास बचेंगे जिसको पूरा करने के लिए अन्य टैक्स का बोझ हम भारतीयों को उठाना होगा.
मित्रों, कहा जा रहा है मात्र, तीन ट्रेनों का किराया बाध्य गया है, लेकिन उन तीन नामो से देश भर में एक सौ बयालीस ट्रेने चलतीं हैं. विस्तार से जानने के लिए इस लेख के अंतिम हिस्से को पढ़े.
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इसी तरह देश के प्रान्तों में सरकारी बसों की सुविधा भी खराब की जाती है एवं नयी बसे खरीदने के स्थान पर युगों पुरानी ही बसों को चलाया जाता है, जिससे यात्री-जन प्राइवेट वेहिकल खरीदने एवं उन व्यापारियों की सुविधा लेने को बाध्य हो जाएं एवं प्राइवेट कंपनियों का व्यापार फलता-फूलता रहे.



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सरकारी नियमों को दुरुस्त करने के स्थान पर, हमारी सरकारें, सभी सरकारी क्षेत्रों को प्राइवेट कंपनियों के हाथों अत्यंत कम दामों में बेच देतीं हैं, जबकि वास्विक लागत मूल्य भी उससे कई गुना अधिक होता है, जबकि कड़े दंडात्मक कानूनों को लाकर, सरकारी व्यवस्थाओं को और भी बेहतर किया जा सकता था. लेकिन चूंकि यहाँ सभी प्रशासनिक व्यवस्थाओं में, अपने भाई-भतीजावाद के अनुसार क़ानून बनाए एवं बिगाड़े जाते हैं, सब के लिए कानून के मुखौटे अलग अलग हैं, अतः यहाँ जनता के हाथ में राईट-टू-रिकॉल के क़ानून का पाश जनता के हाथ में होना ही होगा, तभी यहाँ भाई-भतीजावाद से प्रशासनिक व्यवस्था को मुक्ति मिलेगी.
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क्या आपने अपने नेताओं को कभी एक ईमेल करके या SMS करके पुछा है कि हर पैमाने पर भारतीय रेल का किराया बढ़ाकर, हमें कौन सी सुविधा दी जा रही है?.
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कभी आपने अपने सांसदों, विधायकों, सरकार को पुछा या पूछने की इच्छा आपके मन में आई, कि ये जो समझौतों इत्यादि से बुलेट ट्रेन की व्यवस्था की जारही है, उसका प्रचालन एवं रखरखाव का खर्च सरकार कहाँ से चुकाएगी?
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और क्या भारतीय रेल में सामान्य बोगी की संख्या बढाने में सरकारें अक्षम हैं?
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क्या इसके लिए भी वर्ल्ड बैंक से कर्ज लिया है, या लिया जाना बाकी है?
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और ये कर्ज बुलेट ट्रेन के लिए लिया जा सकता है, तो भारतीय रेलों में सामान्य बोगी की संख्या क्यों नहीं बधाई जा सकती?
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इसके साथ साथ, रेलवे प्लेटफोर्म का चौड़ीकरण जो किया जा रहा है, क्या वो वास्तव में रेलों की अधिक संख्या ट्रैक पे चलाई जाने के लिए है, या फिर इन प्लेटफोर्म पर विदेशियों का मॉल खडा किया जावेगा, जिसे ये लोग आधुनिकीकरण का नाम दे रहे हैं?
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पुनः, चाय-भारतीय नाश्ता-केले-अन्य फल वगैरह जो इन प्लेटफोर्म पर पहले लोग बेच लेते थे, क्या वे अब कभी अपनी सेवा रेलवे प्लेटफोर्म पर नहीं दे सकेंगे?
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क्या चाय-नाश्ता जैसी चीज़ें भी अब लोगों को विदेशी व्यापारियों से ही खरीदनी पड़ेगी?
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अगर इन सब प्रश्नों का आपका जवाब "हाँ" है, तो आप ये कैसे मान सकते हैं, कि वर्तमान की भारतीय सरकार, पूर्व की कांग्रेस सरकार से बढ़िया कार्य कर रही है? क्या निजीकरण का मनमोहन सिंह का कार्य-व्यवस्था एवं विश्व-व्यापार संगठन तथा ग्लोबलिज़ेशन जैसे मुद्दे पर हुए संधियों को लेकर वर्तमान सरकार, उन तमाम नियमो के तहत, निजीकरण को कांग्रेस से भी कई गुना त्वरित गति से लागू नहीं कर रही?
अब आपमें से अधिकतर ये कहेंगे कि नहीं जी, देश में कुछ तो अच्छा हो रहा है, लेकिन क्या आपमें से कोई बता सकता है कि देश में मात्र कुछ स्पेशल व्यक्तियों की छवियों को मनगढ़ंत अच्छाई(व्यक्तिगत जीवन से इतर) देने के अलावा, और कौन सा अच्छा चीज़ हुआ?
हाँ कुछ मामलों के निर्णय कोर्ट में जल्दी आ गए, लेकिन कई अन्य मामले कोर्ट में अभी भी लटके हैं, जिनमे अधिकतर निर्दोष ही जेल में सड़ रहे हैं, उन कानूनी सुधार के लिए इस सरकार ने क्या किया?
जवाब होगा कुछ नहीं.
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फिर कई लोग कहेंगे, हमने तो इस सरकार को अगले पच्चीस साल के लिए चुना है, तो इसका भी भिवष्य यही होगा, की वर्तमान में जो भी आंशिक व्यापार एवं खाद्य-उत्पादक क्षमता हमारे देश के लोगों के पास बची है, ना, उन पच्चीस वर्षों के बाद आपके देश में वो भी ना रहेगा, हाँ, विदेश का जी एम् ओ खाद्यान्न से पीड़ित आपमें से कई लोग काल के गाल में समा चुके होगे, या कई लोग गंभीर रोगों से ग्रसित हो मौत की प्रतीक्षा करते रहोगे.
खैर...ये सब ड्रग इंडस्ट्री के लोगों के फायदे के लिए सोचे एवं किये जाने वाले निर्णय हैं, कि स्वास्थ्य समस्या आप भुगतो, फायदा उन ड्रग-कारोबारियों को हो, आपको नहीं.
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आप सब देश भर में फैली तमाम दुर्व्यवस्थाओं को लेकर, अपने आस पास लोगों से चर्चा तो करते ही होगे, लेकिन आपकी पीड़ा, सरकार तक नहीं पहुँच रही, क्यूंकि मीडिया भी सर्वे करने के नाम पर अपने धन-प्रदाताओं द्वारा दिए गये आंकड़े छपवाती है ना की वास्तविक आंकड़े.
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आपकी चर्चाओं का सरकारों को इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे समझते हैं, कि आप असंगठित हैं, एवं आपमें अपनी शिकायतों को ऐसी किसी संसाधान पर उन्हें सार्वजनिक करने का कोई संसाधन नहीं है, क्यूंकि आप अपनी शिकायतों का एफिडेविट करवाकर माननीय प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर नहीं रख सकते, जिसे अन्य नागरिक भी बिना लॉग-इन किये ही उन सब शिकायतों को देख सकें एवं उसपर अपने प्रस्तावित सुधारात्मक कानूनों का प्रस्ताव रख सकें.
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प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शी शिकायत प्रणाली नहीं है, जिसमे आप अपनी शिकायतों को मात्र एक एफिडेविट द्वारा माननीय प्रधानमंत्री जी की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से रख सकते हैं, जिसे देश के अन्य नागरिक बिना लाग-इन किये देख सकें, एवं मुद्दों से पार पाने के लिए कानूनी सुधार प्रक्रिया का प्रस्ताव रख सकें. एवं आप इसमें साबूतों को भी रखवा सकते हैं अगर आप चाहते हैं तो.
इस प्रक्रिया को ही पारदर्शी शिकायत प्रणाली कहते हैं, इसे राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने की मांग अपने सांसदों/विधायकों से कर आप उनपर नैतिक दबाव बना सकते हैं.
इसे पारदर्शी इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि इस व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना आसान हो जाएगा, जबकि अभी के मौजूदा व्यवस्था में पीड़ित से संपर्क साधना , उनके बारे में पता लगाना इतना आसान नहीं है.
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इस क़ानून का ड्राफ्ट आप यहाँ देख सकते हैं- rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी मेंwww.Tinyurl.com/PrintTCP देखें.
इसे राज्य एवं राष्ट्र के गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप देने के लिए आप अपने सांसदों/विधायकों को sms/ईमेल/ट्विटर एवं माननीय प्रधानमंत्री की वेबसाइट तथा ट्विटर पर भी अपना मात्र एक सांवैधानिक आदेश भेजें. ट्विटर से इसलिए कहा गया क्योंकि अन्य नागरिक भी इस देखकर इसीतरह से अपने तरफ से यही आदेश भेज सकेंगे.
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आप ये आदेश इस तरह से लिखें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट rtrg.in/tcpsms.h (हिंदी) अंग्रेजी में www.Tinyurl.com/PrintTCP को भारत एवं बिहार राज्य के राजपत्र में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz
धन्यवाद "
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अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे:www.nocorruption.in
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अन्य सुधारवादी कानूनों के साथ साथ इस देश में राईट-टू-रिकॉल का अधिकार जनता को नहीं प्राप्त है, जिससे निडर होकर यहाँ भ्रष्ट दबंग नेता छुट्टे घुमते हैं, जज भी भय पूर्वक या अन्य मामलों से प्रभावित होकर, भ्रष्टों को छोड़ देती है, लेकिन इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है. इनको तो कुछ होता नहीं.
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अतः जनता के पास राईट-टू-रिकॉल मंत्री एवं प्रधानमंत्री वालाक़ानून भी जनता के हाथ में होना चाहिए, जिससे अपना पद जाने के भय से ये इमानदारी-पूर्वक जनता के प्रति अपनी जवाबदेही को पूरा कर सकें.
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इसके लिए आपको, www.Tinyurl.com/RTRMinister का राष्ट्रीय गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून बनाकर जनता को समर्पित किये जाने की मांग ऊपर बताये जा चुके तरीके से करें.
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जब अपराध जनता के प्रति हुआ हो ना, तो सजा देने का अधिकार भी हम जनता को ही रहना चाहिए, न कि जजों इत्यादि को, क्योंकि जज व्यवस्था में, जो वकीलों एवं अपराधियों के साथ सांठ गाँठ कर न्यायिक प्रक्रिया पूरी की पूरी तरह से उनके ही पक्ष में देते हैं.
जनता द्वारा न्याय किये जाने को ज्यूरी सिस्टम बोलते हैं,इसके अलावा ज्यूरी सिस्टम जिसमे सरकार एवं अन्य बड़े व्यक्तियों द्वारा अखबारों में यदा कदा प्रकाशित होने वाले ज्यूरी सिस्टम जिसमे कहा जाता है कि ये बिक जाते हैं, जबकि सच्चाई में हमारे संगठन द्वारा प्रस्तावित ज्यूरी सिस्टम में इसके सदस्यों को मतदाताओं की सूची से अचानक से ही न्याय का कार्य दिया जाता है, और वो सदस्य कई वर्षों में मात्र एक बार ही इस समिति का सदस्य बन सकता है, एवं अभियुक्तों व पीड़ितों से सच उगलवाने वाले सार्वजनिक नार्को टेस्ट एवं ऐसे ही ्अन्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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इस सम्बन्ध में और भी जानकारी चाहते हों तो यहाँ देखें-www.righttorecall.info/301.htm
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लेख का अंतिम हिस्सा.:-
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142 ट्रेनों में बढ़ा किराया: राजधानी, शताब्दी, दुरंतो का सफर हुआ महंगा.
बड़ा ही चतुर तरीका अपनाया गया है जनता को झांसा देने के लिये. इसके साथ साथ, शुरू के 100 में से सिर्फ 10 यात्रियों को पुराने रेट पर टिकट मिलेंगे. उसके बाद के यात्रियों के लिए रेल टिकट बहुत ही ऊंचे दाम पर मिलेंगे. यह बढ़ोतरी औसतन 25 फीसद होगी. बिल्कुल बाद में बिकने वाले टिकटों पर यह बढ़ोतरी 40 से 50 प्रतिशत हो गई है. शुरू के सिर्फ दस फीसदी यात्रियों को छोड़ देने के पीछे चतुराई यह है कि अगर महंगा टिकट खरीदने को मजबूर कोई मुसाफिर शिकायत करे तो उसे यह तर्क टिका दिया जाए कि पहले आकर टिकट क्यों नहीं खरीद लिया. यह लंगड़ा तर्क सरकार को जवाब देने के काम आएगा कि सबसे पहले आने वालों के लिए किराया नहीं बढ़ा, जबकि पहले आने वालों का कोटा सिर्फ 10 फीसदी का है.
हर काम धुमावदार तरीके से करने का अभ्यास कर रही नई सरकार ने प्रचार करवाया कि सिर्फ 3 ट्रेनों के किराये बढ़ रहे हैं। लेकिन इन 3 नामों से चलने वाली ट्रनों की कुल संख्या 142 है। राजधानी के नाम से 42, शताब्दी 46 और दूरंतो नाम से अलग-अलग 54 ट्रेनें हैं। यानी यह कोई प्रायोगिक फैसला नहीं बल्कि करोड़ों लोगों की जेब से खूब सारा पैसा निकाल लेने का फैसला है। और अगर जनता ने यह बोझ सह लिया तो बाकी सारी ट्रेनों के किराये तो बढ़ ही जाएंगे।
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अतः अगर आपको देश में व्यापक स्तर पर फ़ैल रही दुर्व्यवस्था को वास्तव में अगर दूर करना है तो ऊपर बताए गए प्रयासों को कर के देखें, बदलाव अवश्य आएगा, शुरू करने की देर है.
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जय हिन्द

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