शहाबुद्दीन का संरक्षण कौन कर रहा है ? लोकतंत्र या तानाशाही व्यवस्था?

शहाबुद्दीन का संरक्षण कौन कर रहा है ?
नितीश लालू.... नितीश -लालू कौन ?
जेपी मूवमेंट से निकले नेता.... जेपी मूवमेंट क्या ?
इंदिरा सरकार की चूलें हिला देने वाला आन्दोलन.....श्रीमति इंदिरा गांधी कौन ? लोकतंत्र में इमरजेंसी का गलत इस्तेमाल कर डिक्टेटर बनने कि कोशिश कर रही संसदीय लोकतांत्रिक भारत की प्रधानमंत्री....!!
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जेपी ने किसके चहरे पर गिराया इंदिरा गांधी को ?
मोरारजी देसाई .... मोरार जी देसाई कौन? जिन्हें शास्त्री जी की मौत का नहीं बल्कि इसका दुःख था कि "कल की छोकरी" पीएम क्यूँ बनी उनकी जगह....?
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"कल की छोकरी" कौन? श्रीमति इंदिरा गांधी.... इंदिरा गांधी कौन? जिसने भारत की सेना को शक्तिशाली बनाने के लिए एवं युद्ध सामग्री को मजबूत बनाने को कई ठोस कदम उठाए, बैंक्स का राष्ट्रीयकरण किये, पूर्वी पाकिस्तान को अलग कर बंगलादेश के रूप में एक नए देश को जन्म दिया, पोखरण में प्रथम परमाणु परिक्षण करवाए एवं द्वितीय एवं अन्य परमाणु परीक्षणों की नींव रखीं.
जिसने जनसंघ की मिटटी पलीद की.... जनसंघ कौन ? एक कट्टर धार्मिक संगठन..... किसने किया उसे बैन?
कांग्रेस ने...
कांग्रेस कौन जो इतने सालों तक भारत की केन्द्रीय सत्ता में रहने के बावजूद, जिसने हाशिमपुरा की जांच ठीक से नहीं करवाई, १९८४ की जांच नहीं करवाई, कई दुर्घटनाओं की जांच नहीं करवाई, घोटालों के नए नए कीर्तिमान बनाए गए......
उसी गठबंधन में आज कौन ?.
नितीश-लालू- कांग्रेस..... नितीश कौन ? वही जो भाजपाई थे..... भाजपा को बिहार के बाहर किसने निकाला... वही नितीश....लालू को दुबारा मुख्य धारा में कौन लाया वही नितीश....
महान हैं वो भारतीय जो इस जलेबी जैसी सिचुएशन में भी वोट डालने जाते हैं.... असली नीर-क्षीर विवेक हंस को नहीं भारतीय वोटर को है.
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इस सबसे अच्छा था, पहले के लोग क़ानून-सुधार एवं व्यवस्था परिवर्तन की तरफ ध्यान देते, एवं जे पी जैसे झूठे नेता राईट-टू-रिकॉल के नारे के स्थान पर इसके ड्राफ्ट का प्रचार जनता में करके गजेट में प्रकाशित करवाते, झूठे नारे दे दे कर बिहार के कॉलेजों के सेशन कई कई वर्ष लेट करने के अलावा इसके आन्दोलन ने कोई रिजल्ट नहीं दिया.
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इसके आन्दोलन से निकले बनावटी नेता जिसे आज लालू यादव एवं इसके साथी लोग हैं. सब के सब केवल अपना उल्लू सीधा करने वाले हैं.
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अगर पब्लिक को वाकई में कुछ अच्छा करना है तो सबको नेताओं एवं भ्रष्ट अधिकारियों के मन में अपने पद से जनता द्वारा निष्कासित किये जाने का डर बैठाकर, उनसे इमानदारी पूर्वक कार्य निकालना होगा, नहीं तो भ्रष्टाचार की कोई सीमा भविष्य में निर्धारित नहीं की जा सकेगी.
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राईट टू रिकॉल ग्रुप द्वारा प्रस्तावित टीसीपी,जूरी सिस्टम,राईट टू रिकॉल जज,राईट टू रिकॉल पुलिस अधीक्षक इत्यादि कानूनी ड्राफ्ट लिंक में देखे ( न्य प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिए यहाँ देखें-https://www.facebook.com/righttorecallC/posts/1045257802233875:0
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इस सम्बन्ध में और भी जानकारी चाहते हों तो यहाँ देखें-www.righttorecall.info/301.htm
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अध्ययन करे और अगर आपको लगे की वास्तव में इससे व्यवस्था परिवर्तन हो सकता है तो अपने नेताओ को SMS/पोस्टकार्ड/ट्विटर/ईमेल द्वारा आदेश भेजे
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जय हिन्द
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अपने सांसदों का फ़ोन नंबर/ईमेल एड्रेस/आवास पता यहाँ लिंक में देखे:www.nocorruption.in
.आप अपना ये आदेश इस तरह से भेजें-
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"माननीय सांसद/विधायक/राष्ट्रपति/प्रधामंत्री महोदय, मैं अपने सांविधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए आपको भारत में पारदर्शी शिकायत प्रणाली के प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट :-https://m.facebook.com/notes/830695397057800/ को गजेट में प्रकाशित कर तत्काल प्रभाव से क़ानून का रूप दिए जाने का आदेश देता /देती हूँ. वोटर-संख्या- xyz धन्यवाद "
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स्टालिन सफल रहे, माओ को आंशिक सफलता मिली, इंदिरा जी ने भी भारत को एक सीमा तक अपने पैरो पर खड़ा किया, लेकिन अन्य तानाशाह या 'वन मेन आर्मी' नुमा अन्य नेता जैसे सद्दाम, गद्दाफी, हिटलर, मुसोलिनी आदि अपने देश को बचाने में असफल रहे।
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कुछ लोग तानाशाही को लोकतंत्र पर तरजीह देते है, तथा मानते है कि तानाशाह या दबंग नेता देश की समस्याओ का तेजी से निपटारा कर सकते है। लेकिन ऐसा बिलकुल भी नही है। दरअसल तानाशाही देश को ज्यादा नुकसान पहुंचाती है जबकि 'सच्चे लोकतंत्र' द्वारा ही देश को सबसे निरापद और तेजी से अपने पैरो पर खड़ा किया जा सकता है। इस स्तम्भ में तानाशाही और सच्चे लोकतंत्र के सन्दर्भ में किसी देश के विकास करने और भविष्य में 'टिके रहने' के पहलुओ पर चर्चा की गयी है।
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अध्याय
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1. सच्चे लोकतंत्र और तानाशाही से आशय।
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2. तानाशाही के अपने खतरे है जबकि सच्चा लोकतंत्र निरापद है।
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3. क्यों किसी देश के बहुधा राष्ट्रवादी/सच्चे कार्यकर्ता लोकतंत्र की जगह तानाशाही को तरजीह देने लगते है ?
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4. कैसे अमेरिका और ब्रिटेन बिना किसी तानाशाह के भी सबसे मजबूत देशो के रूप में उभरे ?
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5. स्टालिन और माओ क्रमश: रूस और चीन को बचाकर ले जाने में सफल रहे, लेकिन अब वे अमेरिका की तुलना में लगातार पिछड़ रहे है।
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6. देवी इंदिरा गांधी, हिटलर और मुसोलिनी प्राथमिक दौर में सफल लेकिन अंतिम दौर में असफल रहे।
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7. सद्दाम और गद्दाफी ने अपने देशो को तबाही दी जबकि नागरिको के सामूहिक प्रयासों ने इस्राएल को आत्मनिर्भर बनाया।
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8. भारत जैसे पिछड़े हुए देश को अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए किस व्यवस्था का आश्रय लेना चाहिए ?
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9. भारत को मजबूत बनाने के लिए आम नागरिक क्या कर सकते है ?
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1. तानाशाही और लोकतंत्र से आशय।
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लोकतंत्र : मेरे विचार में सच्चे लोकतंत्र से मायने ऐसे लोकतंत्र से है --- "जिस व्यवस्था में नागरिको के पास अपने प्रतिनिधियों और सेवको को बहुमत के प्रयोग द्वारा नौकरी से निकलने का अधिकार हो, दंड देने की सर्वोच्च शक्ति नागरिको के अधीन हो, संविधान की व्याख्या करने वाली अंतिम शक्ति नागरिको का बहुमत हो तथा 'आवश्यक' रूप से नागरिको के पास ऐसी प्रक्रिया भी हो जिसका प्रयोग करके नागरिक देश में लागू किये जाने वाले कानूनो पर अपनी राय रख सके"।
उदाहरण के लिए भारत में मतदाताओ के पास एक बार वोट करने के बाद पांच वर्ष से पहले अपने प्रतिनिधियों को नौकरी से निकालने का अधिकार नही है। यदि प्रतिनिधि प्रजा को नुकसान पहुंचाने वाले कानूनो को लागू करते है तो नागरिको के पास उन कानूनो पर अपनी असहमति दर्ज करवाने की भी कोई प्रक्रिया नही है। इतना ही नही, यदि पुलिस या अन्य शासकीय अधिकारियों द्वारा गलत तरीके से नागरिको का उत्पीड़न किया जाता है या न्यायधीशों द्वारा उन्हें गैर वाजिब तरीके से दंड दिया जाता है तब भी भारत के करोड़ो नागरिको के पास इन अधिकारियों या न्यायधीशों को पद से हटाने या उन्हें दंड देने की शक्ति नही है। इस प्रकार अधिकारी, प्रतिनिधि और न्यायधीशों पर नागरिको का कोई अंकुश नही रह जाता। अत: भारत में लोकतंत्र का विकृत रूप है, किन्तु लोकतंत्र नहीं है।
इसीलिए शब्द लोकतंत्र की जगह 'सच्चे लोकतंत्र' शब्द का प्रयोग किया गया है। शेष आलेख में 'लोकतंत्र' शब्द से आशय उस व्यवस्था से ग्रहण किया गया है, जिस व्यवस्था में उपरोक्त वर्णित प्रक्रियाएं है, तथा उपरोक्त प्रक्रियाओ से विहीन लोकतंत्र के लिए 'विकृत लोकतंत्र' शब्द का प्रयोग किया गया है।
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तानाशाही : तानाशाही से मेरा आशय उन सभी व्यवस्थाओ से है जिनमें नागरिको के सामान्य अधिकारों का भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निलंबन कर दिया गया हो। यह निलंबन लोकतांत्रिक रूप से चुनकर आये प्रतिनिधियों द्वारा कर दिए जाने से भी तानाशाही की श्रेणी में आता है। उदाहरण के लिए देवी इंदिरा जी ने लोकतांत्रिक रूप से चुनकर आने के बाद आपातकाल लगाकर नागरिको के अधिकारों में कटौती कर दी थी। इस बारे में कैफियत अलग से दी जा सकती है कि उन्होंने ऐसा किन परिस्थितियों में किया, लेकिन आपातकाल लगाने का कृत्य तानाशाही की श्रेणी में आता है।
तानाशाही में उन शासको को भी शामिल किया गया है जिन्हें मजबूत नेता या मौजूदा व्यवस्था के दायरे से बाहर जाकर 'देशहित' में ताबड़तोड़ फैसले लेने के लिए जाना जाता है। इस लिहाज से मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस श्रेणी में नही रखा गया है।
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2. तानाशाही के अपने खतरे है जबकि सच्चा लोकतंत्र निरापद है।
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मेरे नजरिये में सैन्य ताकत जुटाना किसी देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। क्योंकि किसी देश के सैन्य रूप से आत्मनिर्भर न होने का निश्चित परिणाम यह होगा कि उसे अन्य शक्तिशाली देश द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गुलाम बना लिया जाएगा। और सैन्य दृष्टी से कमजोर देश द्वारा इस परिस्थिति को टाला नही जा सकता। तो किसी भी देश को यदि गुलामी से बचना है तो उसे ऐसे फैसले लेने या ऐसी व्यवस्था को अंगीकार करने की जरुरत है जिससे देश को सैन्य रूप से मजबूत बनाया जा सके। किन्तु जब कोई देश अपनी सेना को मजबूत करने के प्रयास करता है तो उसे पूरी दुनिया के देशो और आंतरिक स्तर पर भी भीषण प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। इसीलिए यह कोई इत्तिफ़ाक़ नही है कि सभी तानाशाहों या मजबूत नेताओ ने देश की सेना को मजबूत बनाने के प्रयास किये, लेकिन एक आध अपवाद की अनदेखी करे तो सभी ने मुहँ की खायी।
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किसी भी देश की शासन व्यवस्था को चार अंग धारण करते है :
१) विधायिका - ये अंग देश के संचालन के लिए क़ानून बनाता है। क़ानूनो का समुच्चय ही शासन है। अच्छे कानूनो का समुच्चय और उनका पालन करवाने की व्यवस्था अच्छे शासन की स्थापना करती है, तथा बेहतर शासन से ही देश को बेहतर बनाया जा सकता है। लेकिन सिर्फ अच्छे क़ानून ही अच्छी शासन व्यवस्था की स्थापना नही कर सकते, क्योंकि इन कानूनो के पालन और क़ानून तोड़ने वालो को दंड देने की व्यवस्था भी बेहतर होनी चाहिए। भारत में क़ानून बनाने का काम सांसद और विधायक करते है।
२) कार्यपालिका - कार्यपालिका का काम बनाये गए कानूनो का पालन करवाना है। कार्यपालिका की तकनिकी परिभाषा जो भी हो, मैं इस अंग में पुलिस, जांच अधिकारी, कर अधिकारी, तहसीलदार, कलेक्टर आदि को शामिल करता हूँ। यदि किसी देश की कार्यपालिका अच्छे से कार्य नही करेगी तो बनाये गए कानूनो का कोई महत्त्व नही रह जाएगा।
३) न्यायपालिका - जो कोई कानून तोड़ता है, न्यायपालिका उन्हें दंड देती है। यदि कानून तोड़ने वालो को त्वरित दंड नही दिया जाए तो बनाये गए सभी क़ानून मिट्टी हो जाते है। क्योंकि क़ानून होने लेकिन उनके तोड़ने पर विलम्ब से दंड होने के कारण ज्यादा से ज्यादा नागरिक क़ानून तोड़ने के लिए प्रेरित होते है।
४) खबरपालिका - शासन द्वारा लिए गए फैसलो और उनके प्रभाव के बारे में नागरिको को सूचित करती है।
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तो जब कोई मजबूत नेता देश की समस्याओ को हल करने के प्रयास तेज करता है, और उसे प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है तो वह इन चारो अंगो को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। असल में जो इन्हें कमोबेश नियंत्रित कर लेता है उसे ही तानाशाह कह कर सम्बोधित किया जाता है। लेकिन शासन पर पूर्ण नियंत्रण करने के बावजूद तानाशाह देश को मजबूत बनाने में असफल रहते है, बल्कि वे समस्याओ को और भी बढ़ा देते है। कैसे ?
शासक नियंत्रण हासिल करने के लिए कठोर क़ानून बनाते है। लेकिन कठोर कानूनो का परिणाम यह होता है कि कार्यपालिका द्वारा नागरिको का गैर जरुरी उत्पीड़न शुरू हो जाता है। चूंकि घूस खाने का सबसे आसान शिकार कारोबारी होते है, अत: सबसे अधिक मार कारोबारियों को ही झेलनी होती है। उद्योग शुरू करने और उन्हें जारी रखना मुश्किल हो जाता है, जिससे उत्पादकता गिरती है। निर्माण उद्योग चौपट होने से तकनिकी विकास अवरूद्ध हो जाता है, जो कि हथियारों के निर्माण और विकास के लिए सबसे अनिवार्य तत्व है। इस स्थिति में जब नागरिको द्वारा विरोध किया जाता है तो उनका दमन कर दिया जाता है, जिससे हालात और भी बदतर हो जाते है। देश में कुछ इस तरह का माहौल खड़ा हो जाता है कि सरकार और उसके अंग देश को आगे बढ़ाने के लिए कार्य कर रहे है तथा सरकार का विरोध करने वाले शेष नागरिक राष्ट्र विरोधी है।
यह सामान्य समझ का विषय है कि किसी भी देश के विकास में देश की सभी संस्थाओं/संगठनों/कम्पनियों/नागरिकों आदि का योगदान होता है, सिर्फ सरकार का नहीं। किसी भी देश की 99% उत्पादकता निजी क्षेत्र से ही आती है। सरकारी क्षेत्र महज 1% होता है। 1% वर्ग चाह कर भी किसी देश की नियति नहीं बदल सकता। सरकार सिर्फ ऐसी व्यवस्था दे सकती है जिससे निजी क्षेत्र फले फूले। लेकिन कठोर शासन निजी संगठनों और निर्माण इकाइयों की रचनात्मकता में बाधा उत्पन्न करता है।
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कुल मिलाकर परिणाम यह होता है कि मुख्य नियंता के ईमानदार होने के बावजूद शासन के अन्य अंगो और उसके विश्वस्त सहयोगियों द्वारा जनता पर दमन बढ़ जाता है, जिससे 2 क्षेत्रो में देश विकास करता किन्तु 100 क्षेत्रो में पिछड़ जाता है। मतलब तानाशाही दो धारी तलवार है। तथा देश को हमेशा इसकी कीमत चुकानी होती है। प्राथमिक दौर में देश को आंशिक फायदा होता है लेकिन अंतिम दौर में देश को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। ईराक, लीबिया, भारत, पाकिस्तान, इटली, जर्मनी, चीन और एक हद तक रूस भी इसका उदाहरण है।
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तानाशाही के उलट लोकतंत्र निरापद है, और लोकतंत्र देश को लगातार मजबूत करता है। बिना कोई नुकसान पहुंचाए। अमेरिका और ब्रिटेन इसका उदाहरण है, जिन्होंने लोकतंत्र का आश्रय लेकर अपने देश को एक निश्चित पद्धति द्वारा मजबूत बनाया।
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3. क्यों किसी देश के बहुधा राष्ट्रवादी/सच्चे कार्यकर्ता लोकतंत्र की जगह तानाशाही को तरजीह देने लगते है ?
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बावजूद इस तथ्य के कि ; अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशो ने लोकतंत्र के चलते अपना विकास किया, और आज ये देश सैन्य-आर्थिक दृष्टी से दुनिया के सबसे ताकतवर देश है। जबकि तानाशाही के कारण ज्यादातर देश या तो तबाह हो गए या तुलनात्मक रूप से पिछड़ गए, आखिर क्यों किसी देश के कार्यकर्ता देश की समस्याओ के समाधान के लिए लोकतंत्र की जगह तानाशाही का समर्थन करने लगते है ?
भारत के सन्दर्भ में तानाशाही के समर्थक कार्यकर्ताओ द्वारा एक लोकप्रिय कारण यह दिया जाता है कि --- भारत के लोगो में शऊर नही है, भारतीय अवाम लोकतंत्र के लायक नही है, सभी बेवकूफ और भ्रष्ट है आदि, तथा इनकी अक्ल ठिकाने लगाने या इन्हें सुधारने के लिए कठोर शासन यानी तानाशाही आवश्यक है। लेकिन यह एक पोचा तर्क है, क्योंकि बहुधा इन्ही कार्यकर्ताओ को अधिकतर यह कहते हुए सुना जा सकता है कि , भारत एक महान देश है , हमारी संस्कृति महान है, भारत में काबलियत है, भारतीय किसी भी देश की योग्यता को टक्कर दे सकते है आदि आदि।
हालांकि पूरी दुनिया में बुद्धिमान या योग्य नागरिको का वितरण समान है, अत: यह तर्क गले नही उतरता कि भारत के लोग अन्य की तुलना में ज्यादा कम अक्ल या भ्रष्ट है। बल्कि ऐतिहासिक रूप से जो बर्बरता, धर्मान्धता और स्वार्थान्धता अन्य पश्चिमी देशो में देखने को आयी है उनकी तुलना में भारतीय कहीं ज्यादा सुसंस्कृत और बुद्धिमान रहे है। इसीलिए यह सिर्फ कहने भर की बात है कि भारतीय लोकतंत्र के नही बल्कि तानाशाही के लायक है।
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जहां तक मैं इसका कारण देखता हूँ वह यह है कि -- भारत के ज्यादातर तानाशाही समर्थक राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओ को यह जानकारी नही है कि, देश को सैन्य दृष्टि से मजबूत बनाने और अन्य समस्याओ के निराकरण के लिए लोकतंत्र सबसे बेहतर और निरापद विकल्प है। लेकिन चूंकि वे भारत के 'विकृत लोकतंत्र' को ही लोकतंत्र की परिभाषा के अंतर्गत रखते है अत: उनका विश्वास लोकतंत्र से विश्वास उठ चुका है। दरअसल पूरी तरह से नाउम्मीद हो जाने के कारण वे समस्याओ को हल करने के लिए तानाशाही के खतरों को जानते हुए भी यह जोखिम उठाने को तैयार है।
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लेकिन मेरा मानना है कि ऐसा करके वे भारत को नए खतरे की और धकेलने का खतरा उठा रहे है , और दिन के दिन मोदी साहेब में विश्वास खोने के साथ तानाशाही के इन समर्थको की संख्या बढ़ते जाने की संभावनाएं प्रबल होती जायेगी।
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4. कैसे अमेरिका और ब्रिटेन बिना किसी तानाशाह के भी सबसे मजबूत देशो के रूप में उभरे ?
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जब ब्रिटेन में लोकतंत्र आया तो इसमें ज्यूरी प्रक्रियाएं शामिल थी, जिसने वहाँ के नागरिको को ताकतवर बना दिया। फलस्वरूप राष्ट्र ताकतवर बना। 13 वी शताब्दी में मैग्नाकार्टा अधिकार पत्र के लागू होने से दंड देने की शक्ति मुट्ठी भर जजो के हाथ से निकलकर नागरिको के हाथो में आ गयी और राजा और उसके कर्मचारियों द्वारा किये जाने वाले उत्पीड़न में कमी आयी। इससे उद्योग और निर्माण उद्योग को बढ़ावा मिला, अत: ब्रिटेन ने नए आविष्कार किये और तकनिकी विकास ने उन्हें सबसे बेहतर हथियाए बनाने में सक्षम बना दिया। 16 वीं शती में यूरोपीय पुनर्जागरण और औद्योगिक क्रान्ति ज्यूरी सिस्टम की ही देन थी। और एक बार यदि कोई देश अपनी सेना को मजबूत बना लेता है तो देश की लगभग सभी समस्याएं आसानी से हल की जा सकती है।
सेना मजबूत हो जाने के कारण ब्रिटेन ने पूरी दुनिया को अपने कब्जे में ले लिया जिसने उनके लिए अन्य देशो के प्राकृतिक संसाधनो को लूट लेने के मार्ग खोल दिए। सस्ते प्राकृतिक संसाधनो ने निर्माण को और भी सस्ता बना दिया, जिसने निर्माण उद्योग को प्रोत्साहन दिया, अत: वस्तुओ की कीमतें तथा बेरोजगारी घटी। निजी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निर्माण उद्योग के पनपने से तकनिकी विकास में और भी तेजी आयी जिससे ब्रिटेन सैन्य और आर्थिक रूप से और भी मजबूत होता चला गया।
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अमेरिका में ज्यूरी सिस्टम 1750 ईस्वी में आया। 1774 में अमेरिका ब्रिटेन की दासता से मुक्त हुआ, और आज अमेरिका सैन्य और आर्थिक दृष्टी से ब्रिटेन से भी ताकतवर देश बन चुका है। दरअसल आजादी के बाद अमेरिका ने ब्रिटेन का अनुसरण करते हुए राईट टू रिकॉल ज्यूरी सिस्टम प्रक्रियाओ पर आधारित लोकतंत्र लागू किया। आज दुनिया में सबसे ताकतवर राईट टू रिकॉल और ज्यूरी प्रक्रियाएं अमेरिका में है, और यह कतई इत्तिफ़ाक़ नही है कि अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है।
असल में देश की सेना को ताकतवर बनाने का सारा दारोमदार हथियारों के तकनिकी विकास पर टिका होता है। तकनीक और निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के दो उपाय है -- १) सरकारी क्षेत्र २) निजी क्षेत्र। सरकारी क्षेत्र निर्माण तो कर सकता है, लेकिन आविष्कार करने में पिछड़ जाता है। तकनीक का आविष्कार निजी क्षेत्र में ही किया जा सकता है, अत: निजी क्षेत्र के पिछड़ने से देश तकनीक में पिछड़ जाता है। उदाहरण के लिए हथियारों की तकनीक के क्षेत्र में अमेरिका रूस से मीलो आगे निकल गया, क्योंकि अमेरिका में हथियार उद्योग निजी क्षेत्र के पास है जबकि रूस हथियारों और तकनीक में सरकारी क्षेत्र पर निर्भर है। और जहां तक भारत की बात है --- भारत के निजी क्षेत्र को हथियारों के उत्पादन की इजाजत ही नही है, और सरकारी क्षेत्र का हाल हमसे छिपा हुआ नही है। नतीजा हमारे सामने है।
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कहने का आशय यह है कि, निर्माण उद्योग में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए हमें ऐसी शासन व्यवस्था चाहिए जिसमे नागरिको का कम उत्पीड़न हो, और उन्हें उद्योग शुरू करने एवं उन्हें संचालित करने के लिए न्यूनतम प्रतिरोध का सामना करना पड़े। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था ऐसे ही शासन की रचना करती है। लोकतंत्र में न्यायधीशों को नौकरी से निकालने का अधिकार और दंड देने की शक्ति नागरिको के बहुमत के पास होती है, जिससे विवादों का निष्पक्ष और त्वरित निपटारा होता है, और उत्पादकता में तेजी आती है। इसी तरह राइट टू रिकॉल प्रक्रियाऐं यह सुनिश्चित करती है कि कारोबारियों का उत्पीड़न करने वाले अधिकारियों पर अंकुश रहे, और उन्हें नागरिको के बहुमत द्वारा नौकरी से निकाला जा सके। इसके अलावा क़ानून बनाने के लिए ऐसी जनमत संग्रह प्रक्रियाएं आवश्यक है जिनसे नागरिक उन कानूनो पर अपना समर्थन दर्ज कर सके जो वे देश में लागू करवाना चाहते है।
अमेरिका में वहाँ के नागरिको के पास ये सभी प्रक्रियाएं मौजूद है, जिससे शक्ति 1% नेताओ, अधिकारियों और न्यायधीशों के हाथो से निकल कर नागरिको के हाथो में चली आई है। इससे वहाँ का 'लोक' (लोग का बहुवचन 'लोक' होता है) नेताओ, अधिकारियों, धनिकों, न्यायधीशों आदि की तुलना में ज्यादा मजबूत हो गया, और 99% लोक के मजबूत हो जाने से देश मजबूत हुआ। भारतवर्ष जैसे देशो में स्थिति इसके उलट है। भारत में 'विकृत लोकतंत्र' होने के कारण न्यायपालिका, विधायिका, खबरपालिका और कार्यपालिका लोक की तुलना में ज्यादा मजबूत हो गयी, अत: इन 1% लोगो ने 99% की तुलना में ज्यादा "विकास" किया। इससे लोक कमजोर हुआ फलस्वरूप राष्ट्र कमजोर हो गया।
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तो इस प्रकार तानाशाही एक ऐसा तरीका है,जिसमें एक नेता अपने 1000-500 विश्वस्त सहयोगियों की सहायता से देश को मजबूत बनाने और समस्याओं को हल करने का प्रयास करता है, तथा शेष जनता को खेल से बाहर कर दिया जाता है या वे तमाशबीन बन जाते है। जबकि लोकतंत्र में देश के 100% नागरिको की भागीदारी होती है। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशो ने नागरिको की भागीदारी बढ़ाने वाले क़ानून लागू किये और बिना किसी तानाशाही के सबसे मजबूत देशो के रूप में उभरे। जबकि अन्य देश लोकतंत्र के अभाव या तानाशाही के चलते तबाह हो गए, या पिछड़ गए, या लगाताार पिछड़ते जा रहे है, या तुलनात्मक रूप से पीछे रहे।
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5. स्टालिन और माओ क्रमश: सोवियत संघ और चीन को बचाकर ले जाने में सफल रहे, लेकिन अब वे अमेरिका की तुलना में लगातार पिछड़ रहे है।
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जोसेफ स्टालिन 1922 से 1953 तक सोवियत संघ और माओ 1949 से 1976 तक चीन के मुख्य नीति नियंता बने रहे। स्टालिन और माओ दोनों ही अपने देशो की सेना को मजबूत बनाने में सफल हुए। लेकिन दोनों ही देश आज अमेरिका की तुलना में पिछड़े हुए है। दोनों देशो को अपनी सेना मजबूत करने के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। लाखों नागरिको को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, नागरिक अधिकारों को कुचला गया और देश के बड़े तबके को दमन का सामना करना पड़ा। कारण यही था कि दोनों नेताओ ने निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया, जिससे लागत बढ़ी और तकनिकी आविष्कार में कमी आयी। राईट टू रिकॉल और ज्यूरी प्रक्रियाओ की कमी ने स्थिति और भी बदतर कर दी, तथा सरकारी विभाग बड़े पैमाने पर भ्रस्टाचार के शिकार हो गए, जिससे निर्माण लागत और भी बढ़ी, तकनिकी कुशलता में कमी आयी और निर्माण "प्रोद्योगिकी" उतना विकास नही कर सकी, जितना कि अमेरिका ने किया।
हालांकि स्टालिन राईट टू रिकॉल कानूनो के मौखिक समर्थक थे और उन्होंने 1937 में दिए अपने वक्तव्य में कहा था कि :
"इसके अलावा, कामरेडों, मैं आपको कुछ सलाह देना चाहूँगा, एक प्रत्याशी की उसके मतदाताओं को सलाह --- यदि तुम पूंजीवादी देशों का उदाहरण लोगे तो तुम विशेष कर पाओगे कि, उन देशों में प्रतिनिधियों और मतदाताओं के बीच अत्यंत विचित्र संबंध मौजूद है। जब तक चुनाव की कार्रवाई चल रही होती है तब तक प्रतिनिधि मतदाताओं को रिझाते हैं, उनकी खुशामद करते हैं, कृतज्ञता की सौगंध खाते हैं और हर तरह के वायदों का ढेर लगा देते है। ऐसा लगता है मानों ये प्रतिनिधि मतदाताओं पर पूरी तरह आश्रित है। लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होता है और ये प्रत्याशी प्रतिनिधि बन जाते है, तो संबंधों में पूरी तरह से बदलाव आ जाता है। मतदाताओं पर निर्भर होने की बजाए ये प्रतिनिधि पूरी तरह निरंकुश हो जाते है। अगले चार या पांच वर्षों के लिए, अर्थात अगले चुनाव तक ये प्रतिनिधि जनता से और अपने मतदाताओं से भी निरंकुश बने रहते है, और बिलकुल स्वछन्द व्यवहार करते है। वे एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जा सकते है। सही रास्ते से गलत रास्ते पर जा सकते है। वे जितनी चाहे उतनी कलाबाजियां खा सकते है। क्योंकि वे निरंकुश है। क्या ऐसे संबंध सामान्य माने जा सकते है। कामरेडों, नहीं, किसी भी तरह से नहीं। इस परिस्थिति पर हमारे संविधान द्वारा विचार किया गया था। और इसमें एक कानून बनाया गया कि, मतदाताओं को अपने प्रतिनिधियों को उनके पद की अवधि समाप्त होने के पहले ही तब वापस बुलाने का अधिकार होगा जब ये प्रतिनिधि तिकड़मबाजी करना शुरू कर दें, यदि वे रास्ते से भटक जाएं और वे भूल जाएं कि वे जनता पर, मतदाताओं पर निर्भर है"
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हालांकि स्टालिन ने रूस में कभी भी राईट टू रेकलल प्रक्रियाएं लागू नहीं की, और वे केवल इसका मौखिक समर्थन ही करते रहे।
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यहां इस बात को समझना भी जरुरी है कि क्यों स्टालिन और माओ अपने देश को मजबूत बना सके। क्योंकि इन दो तानाशाहों के अलावा अन्य कोई भी तानाशाह अपने देश को बचाने में सफल नही हुआ। इसका मुख्य कारण यह था कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन और अमेरिका की सैन्य-आर्थिक शक्ति कमजोर हो चुकी थी और वे युद्ध लड़ने की स्थिति में नही थे। और इसी समय का इस्तेमाल स्टालिन ने परमाणु बम के निर्माण में किया। 1949 में सोवियत संघ अपना पहला परमाणु परिक्षण कर चुका था, और उसने अमेरिका-ब्रिटेन के प्रतिरोध का सामना करने के लिए लगातार अपनी परमाणु और सैन्य ताकत बढ़ायी। परमाणु अस्त्रों से लैस हो जाने के कारण अमेरिका और रूस के बीच युद्ध की संभावना टल गयी और अगले दो 2 दशक तक शीत युद्ध ही एक मात्र विकल्प बना रहा। लेकिन जहां एक तरफ अमेरिका लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के कारण प्रोद्योगिकी और निर्माण में तेजी से विकास कर रहा था, वहीँ दूसरी तरफ सोवियत संघ मुट्ठी भर व्यक्तियों और खासकर स्टालिन पर टिका हुआ था। व्यक्ति नश्वर और व्यवस्था सतत होती है, अत: नतीजा यह हुआ कि 1976 में स्टालिन की मृत्यु के उपरान्त अमेरिका सोवियत रूस के टुकड़े करने में सफल हो गया।
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माओ को भी इस परिस्थिति का लाभ मिला। माओ ने जब सैन्य और आर्थिक सुधार करने शुरू किये तो अमेरिका-ब्रिटेन चीन को रोक पाने में सक्षम नही थे। क्योंकि उस समय एक स्तर तक ख्रुश्चेव का माओ से सहयोगात्मक रवैया था। इसी से चीन अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा पाया, और 1964 में पहले परमाणु विस्फोट के बाद चीन भी आसान शिकार नही रह गया था। और जब अमेरिका ने चीन पर शिकंजा कसना शुरू किया तो चीन भारी मात्रा में परमाणु हथियारों का उत्पादन कर लेने के कारण प्रतिरोध करने लायक हो चुका था। जब अमेरिका ने चीन को घेरने के प्रयास शुरू किये तो चीन ने अपने परमाणु हथियार ईरान और अन्य मुस्लिम राष्ट्रों को देने की धमकी दी, जिससे अमेरिका को पीछे हटना पड़ा।
इसमें कोई संदेह नही है कि स्टालिन के कारण आज रूस इतना शक्तिशाली है कि अमेरिका या अन्य कोई भी देश कभी भी रूस को पराजित नही कर सकेगा, लेकिन हमें यह नही भूलना चाहिए कि यदि रूस के पास इतने विपुल प्राकृतिक संसाधन नही होते, यदि सोवियत संघ समय रहते अपनी परमाणु क्षमता नही बढ़ा पाता तो स्टालिन जैसे नेता के होते हुए भी रूस के हालात ईराक जैसे हो सकते थे। बावजूद इसके आज रूस प्रोद्योगिकी और निर्माण के क्षेत्र में अमेरिका की तुलना में पिछड़ा हुआ है, तथा लगातार पिछड़ रहा है। और जहां तक चीन की बात है, चीन अमेरिका-ब्रिटेन से इतना पिछड़ा हुआ है कि वह इन देशो की जद में है और कभी भी अमेरिका-ब्रिटेन का शिकार हो सकता है।
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