पिछड़े लोग आखिर हैं कौन?

जब अन्याय ही क़ानून बन जाता है न, तो विद्रोह ही कर्तव्य हो जाता है !!
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अगर आप भारत में रहते हैं तो आपने जातिगत आधारित सामाजिक व्यवस्था तथा रिजर्वेशन सिस्टम के साथ कभी न कभी लेन-देन किया ही होगा, जिंदगी में कम से कम एक बार तो ध्यान दिया ही होगा.
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अगर भेद भाव की बात करे तो अगड़ो को तो छोड़ दीजिये , पिछड़ी जाती के लोग खुद को दलितों से श्रेष्ट समझते है , दलितों में ही ले लीजिये धोबी खुद को अन्य दलितों से श्रेष्ठ मानता है ,धनुक जाती के लोग खुद को चमार एवं खटिक जाती के लोगो से श्रेष्ठ समझते है , चमार खुद को पासी और जमादार से श्रेष्ठ मानते है |
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इसी प्रकार पिछडो में भी यादव खुद को अन्य पिछडो से श्रेष्ट मानते हैं , पाल अपने को नाई , लोधी इत्यादि से श्रेष्ठ समझते है और इनमे से कोई भी एक दुसरे के साथ रोटी - बेटी का सम्बन्ध नहीं रखता | तो फिर छुआ - छूत के लिए सिर्फ अगड़ी जातियां ही किस प्रकार जिम्मेदार है ??? इन सब का मूल कारण है की हर व्यक्ति अपने मन में श्रेष्टता के अहंकार से ग्रसित है.
अतः वह स्वयं के कर्म को और ओहदे को सदैव दूसरे से ज्यादा श्रेष्ट समझता है | इस लिए छुआ - छूत की समस्या सिर्फ अगड़ा बनाम पिछड़ा या सवर्ण बनाम शुद्र की नहीं है , बल्कि ये सम्पूर्ण समाज एवं मानव जाती की है , इस लिए इसका समाधान किसी प्रकार के वर्ग संघर्ष के द्वारा नहीं बल्कि सभी के द्वारा मिल कर ही निकाला जा सकता है | और इसके लिए सबसे जरुरी है की हम सभी को यह समझना होगा की जीवन को जीने के लिए हमें हर कर्म की आवश्यकता है.
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अतः समाज में प्रथम पंक्ति से लेकर अंतिम पंक्ति में बैठा हुआ हर व्यक्ति इस समाज का महत्वपूर्ण घटक है ,उसका कर्म भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की मेरा , अतः उसका कर्म भी मेरे कर्म की तरह सम्मान के योग्य है | जब हम सभी इस विचार के साथ जियेगे तभी समाज में समरसता का माहौल बनेगा |
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मित्रों, ये लेख थोडा अधिक शब्दों का हो गया है, अतः कृपया धैर्य रखकर पूरा पढ़ें.
किसी निजी कंपनी में झाड़ू पौछा करने की नौकरी के लिए कितने लोग आरक्षण की मांग कर रहे है ? लेकिन यही काम यदि उन्हें सरकारी दफ्तर में करने को मिले तो लोग सड़को पर उतर कर बसे फूंकने, पथराव करने और यहाँ तक कि खुद को आग लगाने के लिए भी तैयार है। और यही स्थिति सभी सरकारी नौकरियों के साथ है। क्योंकि निजी कंपनी में किसी व्यक्ति को कामचोरी करने पर मालिक द्वारा नौकरी से निकाल दिया जाता है जबकि सरकारी नौकरी कम काम करने के बावजूद सुरक्षित है। तो नौकरी नहीं सरकारी नौकरी चाहिए और सरकारी नौकरी के लिए आरक्षण चाहिए।
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आशय यह नहीं है कि सभी सरकारी कर्मचारी कामचोर है और मुफ्त का पैसा उड़ा रहे है। लेकिन यह सच है कि 1) यदि प्राइवेट कंपनी किसी कर्मचारी को 300 रू रोज देती है तो अमुक व्यक्ति को उतने ही रूपये का काम भी करना होता है, जबकि सरकारी कम्पनी में न्यूनतम कार्य करने पर भी नौकरी चालू रहती है। 2) प्राइवेट कंपनी में काम नहीं किया तो नौकरी जायेगी जबकि सरकारी नौकरी में अफसर को खुश करके रखने से नौकरी से हाथ धोने की सभावना लगभग नहीं है। 3) प्राइवेट कम्पनी में घूस खाने का अवसर नहीं है, जबकि सरकारी नौकरी घूस खाकर असीमित धन कमाने का अवसर प्रदान करती है। पद जितना बड़ा होगा ये अवसर भी उतने ही अधिक होंगे। 4) नागरिक सरकारी कर्मचारियों से बेहद मुलायमियत से पेश आते है। कई अधिकारी जनता को मवेशियों की तरह ट्रीट करते है क्योंकि उन्हें और जनता दोनों को पता है कि जनता उनका कुछ उखाड़ नहीं सकती। प्राइवेट नौकरी में यह ठसक नहीं है।
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दूसरे शब्दों में जब कोई काम करने के लिए जितना पैसा मिले उतना ही काम करना पड़े तो ऐसी नौकरी कोई नहीं करना चाहेगा, ख़ास तौर पर तब, जबकि उतना ही पैसा कम काम करने से मिल रहा हो।
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मतलब, यदि सरकारी नौकरियों से भ्रष्टाचार मिटा दिया जाए और निकम्मापना देखने पर उन्हें नौकरी से निकालने की सहज प्रक्रिया हो, तो आरक्षण की मांग करने वाले और विरोध करने वाले दोनों ही फरार हो जाएंगे और आपको ढूंढे से भी नहीं मिलेंगे।
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लेकिन यह देखा गया है कि है कि जब भी आरक्षण का विषय आता है हजारो की संख्या में लोग समर्थन और विरोध करने निकल आते है, लेकिन उनमे से एक आध प्रतिशत ही सांसद से भ्रष्टाचार मिटाने के कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने की मांग करते है। ये सभी सरकार पर आरक्षण के क़ानून को लेकर दबाव बनाने में लगे रहते है। समर्थन वाले भी, और विरोध वाले भी।
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असल में यह कुश्ती घूस का अधिकार प्राप्त करने को लेकर है।
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आप ध्यान देंगे तो सुन पाएंगे कि आरक्षण मांगने वाले कह रहे है कि, हर साल सरकारी अधिकारी करोडो रूपये की रिश्वत खा रहे है, इसलिए मुझे और मेरे जाति भाइयो को भी इसमें से रूपया खाने का मौका दिया जाए। इसलिए ये लोग सरकारी विभागों से भ्रष्टाचार दूर करने के कानूनो की मांग करने की जगह उस भ्रष्टाचार में हिस्सा खाने के लिए आरक्षण का क़ानून लागू करने की मांग करते है।
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और आरक्षण का विरोध करने वाले कहते है कि सरकारी अधिकारी करोडो रूपये की रिश्वत खा रहे है उन्हें खाने दो, जो योग्य है उन्हें ही ये घूस खाने का अवसर मिलना चाहिए। इसलिए मेरी रुचि उन कानूनो में नहीं है जिससे ये भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाए। आप आरक्षण ख़त्म कर दो ताकि योग्यता के आधार पर घूस का बाँट बखरा किया जा सके।
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दोनों ही अपने अपने ढंग से लगे हुए है।
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मित्रों, सरकारी नौकरियों पर टूट कर पड़ने का मुख्य कारण 'सेवा सुरक्षा' और घूस खाने के अवसर है। यहाँ सेवा सुरक्षा से मतलब है कि कामचोरी करने के बावजूद नौकरी कायम रहना। जबकि निजी कम्पनी में कामचोरी करने पर सेवा की सुरक्षा का लोप हो जाता है। राजकिय कर्मचारियों को घर जमाई यूँ ही नही कहा जाता। जो कुछ ईमानदार कर्मचारी है वे ताउम्र सिस्टम से लड़ते रहते है और प्रतिभाशाली लोग अच्छे प्रदर्शन के बावजूद पदोन्नति के अवसर न होने के कारण सरकारी नौकरियों की और देखते भी नही।
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यदि कल सरकार आदेश जारी करके नयी होने वाली सभी सरकारी नियुक्तियों के वेतन में 25% की कटौती कर दे तब भी आरक्षण के लिए टूटे पड़ रहे लोगो में कोई उल्लेखनीय कमी नहीं आएगी। क्योंकि वेतन से कोई लेना देना ही नही है। सारा मामला सेवा सुरक्षा (निकम्मापन) और घूस खाने के अवसर का है।
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यदि हम अमेरिका का उदाहरण ले तो इस फ़र्क़ को समझा जा सकता है। अमेरिका में सरकारी नौकरियों में 'रोजगार के समान अवसर' नाम से योजना लागू है जो कि एक प्रकार का आरक्षण है। इस के तहत कुछ अफ़्रीकी अमेरिकन वर्ग के नागरिको को आरक्षण का लाभ दिया जाता है। लेकिन वहाँ न तो इस आरक्षण को मांगने वालो की तादाद ज्यादा है न ही इसका विरोध करने वालो की। क्योंकि इस कोटे के तहत नौकरी पाने वाले को लॉटरी नहीं लगी जा रही है। उन्हें वहाँ जितना वेतन मिलता है उसके अनुसार काम करना पड़ता है, और निकम्मापन दिखाने पर सेवा सुरक्षा खतरे में आ जाती है। इसका कारण है कि कई विभागों जैसे पुलिस, शिक्षा, न्यायपालिका आदि के मुख्य अधिकारियों को नौकरी से निकालने का अधिकार वहाँ की जनता के पास है। अत:कर्मचारियों को काम करना होता है जबकि भारत में अफसर की लल्लो चप्पो करते रहने से नौकरी भी सुरक्षित रहती है और सब मिलजुल कर धांधलीया भी करते है।
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जब आरक्षण मांगने वालो और विरोध करने वालो से कहा जाता है कि इस सर्कस को रोकने के लिए भारत में राईट टू रिकाल कानूनो की जरुरत है, अत: अपने सांसद से इन कानूनो की मांग कीजिये ताकि भारत की राजकीय सेवाओ में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सके तो दोनों ही पक्ष इन कानूनो का विरोध करते है और अपनी शक्ति आरक्षण मांगने और ख़त्म करने पर लगाते है।
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इसी तरह यह तर्क कि, आरक्षण योग्यता के साथ अन्याय है, और इस व्यवस्था के कारण नाकाबिल लोग नियुक्त किये जा रहे है, पूरी तरह सही नही है। मेडिकल एंट्रेंस की वरीयता सूचियाँ देखने पर मालूम होता है कि जहां सामान्य वर्ग की मेरिट 92% पर रहती है तो SC, ST और OBC का कट ऑफ क्रमश: 88%, 86% और 90% रहता है। लेकिन अप्रवासी (NRI) कोटे का कट ऑफ काफी नीचे, लगभग 70% के आसपास रहता है। इस स्थिति में योग्यता को ज्यादा नुकसान तो वित्त पोषित (self financed quota) सीटो से हो रहा है।
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लेकिन यह अजीब बात है कि योग्यता-न्याय के आधार पर आरक्षण को ख़त्म करने की मांग करने वाले कभी भी वित्त पोषित कोटे को ख़त्म करने की मांग नहीं करते।
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सार यह है कि जो भी आरक्षण की समस्या का हल चाहते है, उन्हें अपने सांसदों से राईट टू रिकॉल प्रक्रियाओ एवं जूरी सिस्टम कानूनो को गैजेट में छापने की मांग करनी चाहिए ताकि सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार और कामचोरी बंद हो। ऐसा होने से आरक्षण मांगने वालो और आरक्षण ख़त्म करने वालो, दोनों की ही संख्या में कमी आ जायेगी।
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अलावा इसके, आरक्षण समस्या के समाधान के लिए हमने जो कानूनी ड्राफ्ट प्रस्तावित किये है उन्हें यहां पढ़ा जा सकता है।
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आप हमारे राईट-टू-रिकाल समूह द्वारा पिछड़ी जातियों के समर्थन द्वारा आरक्षण घटाने का प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट निम्न-लिखित लिंक्स पर पढ़ सकते हैं.
अ) tinyurl.com/AarakshanGhatao
ब) tinyurl.com/AarakshanGhatao1
स) tinyurl.com/AarakshanGhatao2
द) tinyurl.com/AarakshanGhatao3
आप अपने सांवैधानिक अधिकार एवं कर्तव्य के तहत उपरोक्त कानूनों को अपने एम् पी / एम् एल ए मंत्रियों को अपने मतदाता पहचान संख्या के साथ गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप देने को प्रेरित करें.
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इस क़ानून-ड्राफ्ट की मांग सांसदों/विधायकों से गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप दिए जाने की मांग कर सकते हैं, साथ ही आपका मांग सांवैधानिक भी है क्योंकि हम एक प्रजातांत्रिक गणतंत्र में रह रहे हैं-
"माननीय सांसद/ विधायक महोदय, मैं अपने सांवैधानिक कर्तव्य का पालन करते हुए जातिगत आरक्षण हटाने के नियम का ड्राफ्ट -
को भारतीय गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप दिए जाने की मांग करता/ करती हूँ. धन्यवाद, वोटर संख्या- xyz. "
धन्यवाद.
अगर आप भारत की साधारण जनता की भलाई के लिय आन्दोलन चलाना चाहते हैं तो कृपयाrajivdixitji.com से जुड़े.
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साथ ही राईट तो रिकाल समूह के द्वारा सुझाया हुआ पारदर्शी शिकायत सिस्टम जिसका ड्राफ्ट है-tinyurl.com/TeenLineKanoon. आपसे अनुरोध है कि आप एक बार इसको पढ़ें. सिर्फ तीन लाइन का यह कानून गवाह, अपराध की जानकारी देने वाले कार्यकर्ताओं (सचेतकों) की जान बचायेगा, भ्रष्टाचार, गरीबी, अशिक्षा, महंगाई, बेरोजगारी आदि समस्याओं को कुछ ही महीने में कम कर देगा और देश में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना करेगा ।
इस क़ानून-ड्राफ्ट की मांग सांसदों/विधायकों से गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप दिए जाने की मांग कर सकते हैं, साथ ही आपका मांग सांवैधानिक भी है क्योंकि हम एक प्रजातांत्रिक गणतंत्र में रह रहे हैं-
"माननीय सांसद/ विधायक महोदय, मैं अपने सांवैधानिक कर्तव्य का पालन करते हुए पारदर्शी शिकायत सिस्टम के ड्राफ्ट tinyurl.com/TeenLineKanoon को भारतीय गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप दिए जाने की मांग करता/ करती हूँ. धन्यवाद, वोटर संख्या- xyz. "
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कैसे ये प्रक्रिया नागरिकों, गवाहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की जान बचा सकती है ? जैसे की आप राजिव-दीक्षित जी के हत्यारों को इस प्रणाली से खोजकर उचित सजा भी दिलवा सकते हैं.
मान लीजिए, किसी क्षेत्र में कोई अपराध हुआ है और नागरिक उसकी एफ.आई.आर. लिखवाता है या गवाही/सबूत देता है और नागरिक को एफ.आई.आर. की कॉपी मिलती है तो उसे कोई भ्रष्ट पुलिस अफसर अपराधियों के साथ सांठ-गाँठ करके आसानी से दबा सकते हैं | क्योंकि नागरिक अपनी दर्ज एफ.आई.आर. या अर्जी जमा करने के बाद देख नहीं सकते |
और आज के सिस्टम में गवाहों को गलत तत्व आसानी से डरा-धमका सकते हैं ; यहाँ तक गवाहों को जान से भी मार दिया जाता है | क्योंकि गुंडों को मालूम है कि अधिक लोगों को तथ्य की जानकारी नहीं है और गवाह दबाने/मारने से सबूत समाप्त हो जायेंगे |
लेकिन यदि नागरिकों के पास ये नागरिक-प्रामाणिक विकल्प है कि वे अपनी बात, सबूत या राय अपनी वोटर आई.डी. नंबर के साथ सार्वजनिक रूप से दर्शा सकते हैं, तो पुलिस अफसर देखेगा कि सबूत को दबाया नहीं जा सकता है, अब तो लाखों-करोड़ों को प्रमाण प्राप्त हो गए हैं | और गुंडों को भी समझ में आएगा कि गवाह ने अपना बयान सार्वजनिक कर दिया है - इसीलिए अब गवाह को मारने से कोई लाभ नहीं है | इस प्रकार गवाह की भी जान बच जायेगी |
क्यों भारत के नागरिकों को इस कानून की सबसे ज्यादा जरुरत है ?
भारतीय राज व्यवस्था में सबसे बड़ा दोष यह है कि नागरिकों के पास शासकों के सम्मुख अपनी स्पष्ट मांग संगठित रूप से रखने की कोई नागरिक-प्रामाणिक प्रक्रिया नहीं है ।
यदि प्रधानमन्त्री या मुख्यमंत्री अपनी कोई बात जनता के सामने रखना चाहे तो वे ऐसा मिडिया के माध्यम से आसानी से कर सकते है, किन्तु यदि जनता अपनी कोई मांग या सुझाव् शासन के सम्मुख रखना चाहे तो उन्हें अनशन, धरने, विरोध प्रदर्शन, हस्ताक्षर अभियान, ज्ञापन, रास्ता जाम, नारेबाजी आदि असंगठित तरीकों को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है । किन्तु इन सब तरीकों से कोई 'नागरिक प्रमाणिक' प्रमाण पैदा नहीं होता, मतलब कोई भी नागरिक स्वयं जांच सके, ऐसा प्रमाण नहीं मिल पाता कि कितने नागरिक अमुक विषय के समर्थन या विरोध में हैं । नागरिक-प्रामाणिक नहीं होने से इन प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता नहीं होती और नागरिक या अफसर कोई स्पष्ट निष्कर्ष पर नहीं आ पाते |
www.pgportal.gov.in जैसी सरकारी साईट में नागरिक के वोटर आई.डी. के साथ शिकायत दर्शाने का विकल्प भी नहीं है, जिससे दूसरे नागरिक ये पता नहीं लगा सकते कि शिकायत दर्ज करने वाला व्यक्ति असली हैं कि नकली | लेकिन टी.सी.पी. में नागरिक की राय पहचान पत्र के साथ प्रधानमंत्री वेबसाईट पर आएगी ; कोई भी नागरिक वोटर आई.डी. राय वाले डाटा का सैम्पल लेकर, राय देने वाले व्यक्तियों का पता निकालकर उनसे संपर्क करके स्वयं पता लगा सकता हैं कि डाटा सही है कि नहीं |
जिन लोगों के पास इन्टरनेट नहीं भी है, वे भी इस प्रक्रिया का उपयोग कर सकेंगे, कलक्टर दफ्तर या निश्चित सरकारी दफ्तर जाकर और अपनी अर्जी प्रधानमंत्री वेबसाईट पर स्कैन करवाकर | क्योंकि इस प्रक्रिया में कोई भी व्यक्ति कभी भी अपनी राय बदल सकता है, ये प्रक्रिया पैसों, गुंडों, मीडिया द्वारा या अन्य किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं कि जा सकेगी | प्रक्रिया नागरिक-प्रामाणिक होने से कोई भी नागिक स्वयं जांच सकता है कि सच क्या है, क्या नहीं |
इस प्रस्तावित प्रक्रिया के लागू होने से प्रस्तावों को दबाया नहीं जा सकता है और दूसरे जनहित के प्रक्रियाओं की आने की सम्भावना बढ़ जायेगी जिससे गरीबी और भ्रष्टाचार को कुछ ही महीनों में कम किया जा सकता है |
अधिक जानकारी के लिए http://www.righttorecall.info/tcpsms.h.htm देखें (डाउनलोड लिंक -http://www.righttorecall.info/tcpsms.h.pdf)|
प्रश्नोत्तरी के लिए http://www.righttorecall.info/007.h.htm देखें (डाउनलोड लिंक -http://www.righttorecall.info/007.h.pdf) |
धन्यवाद मित्रों,
जय हिन्द. 

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