"सर्वधर्मसमभाव" बकवास है जो सम्प्रदाय को धर्म समझने वाले आधुनिक मूर्खों ने गढ़ लिया है.

ब्रह्मा, विष्णु, महेश में बड़ा कौन है? 
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उत्तर :--
यदि आप सही उत्तर बता दें तो क्या वह शान्तिप्रिय शरीफ आपके बताये सबसे बड़े हिन्दू देवता की पूजा करने लगेगा ? आप भी जानते हैं कि ऐसा नहीं होगा | धर्मशास्त्र में आदेश है कि शास्त्र का सही अर्थ जानने के लिए शंका करना और उसका निवारण करना शास्त्रार्थ है | जिनकी नीयत में खोट है उनसे शास्त्रार्थ करने की मनाही है |
उसका मुँह बन्द करने के लिए दाम-दण्ड-भेद की आवश्यकता पड़ेगी, साम की नहीं | ये "शान्तिप्रिय शरीफ" लोग शान्ति और तर्क की बात नहीं समझ पाते |
प्रश्न पूछने वाले के मन में स्वयं कोई जिज्ञासा नहीं थी, केवल दूसरे का मुँह बन्द करवाने की इच्छा थी, अतः इतना ही उत्तर पर्याप्त है, जो "तोल-मोल" कर दिया गया है |
कौन देवता बड़ा है इस प्रश्न का उत्तर मेरे पिछले लेखों में पहले से है जो इन महाशय ने नहीं पढ़ा है |


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अहंकार ही छोटा बनाता है, जो वास्तव में बड़ा होता है उसे बड़प्पन का अहंकार नहीं होता | 
अहंकार तीन प्रकार के होते हैं -- तामसिक, राजसिक और सात्विक | 
तामसिक अहंकार काम-क्रोध-लोभ-मोह आदि पापों का कर्ता होता है और दूसरों को दुःख तो देता ही है, अन्ततः स्वयं के लिए भी दुःख और नाश का कारक बनता है | 
राजसिक अहंकार मनोरंजन को प्रधानता देता है और पूरे संसार को खिलौना समझता है | 
सात्विक अहंकार धार्मिक कार्यों का कर्ता बनाता है, किन्तु यहाँ भी कर्तापन है ही, और जहाँ कर्तापन है वहाँ फल भोगने का चक्र भी रहेगा, मुक्ति का मार्ग बन्द रहेगा | 

तीनों के त्याग करने पर वास्तविक आत्मज्ञान का उदय होता है, जो किताबी ज्ञान से नहीं हो पाता, ज्ञान-कर्म-भक्ति के समन्वित 'व्यवहार' से होता है | तब दिव्यता की प्राप्ति होती है | जो वास्तव में दिव्य है वह एक है, वहाँ कोई द्वैत नहीं होता, छोटे-बड़े देवताओं का या भक्त और भगवान का भेद नहीं होता | यही ज्ञान है, शेष सबकुछ अज्ञान है | किन्तु जबतक जीवन है तबतक संसार में कर्म करना ही पड़ता है, जो निष्काम भाव से करने पर ही फलों के बन्धन से छुटकारा मिलता है | 

संसार में कर्म करने वाले सात्विक अहंकार के व्यक्ति के लिए देवताओं का महत्त्व है | कोई देवता छोटा या बड़ा नहीं होता, यह व्यक्ति की मानसिकता और योग्यता पर निर्भर करता है कि उसके लिए किस देवता की उपासना उचित है | किन्तु विभिन्न देवताओं की उपासना से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है, मुक्ति नहीं मिलती | 

जो निराकार निर्गुण निर्विकल्प ब्रह्म को समझने की योग्यता नहीं रखते, उनके लिए अभीष्ट देवता की आराधना से ही मुक्तिदायक ब्रह्म को जानने की योग्यता का मार्ग खुलता है | 

तैंतीस कोटि (कोटिगरी > category, प्रकार) देवता के प्रतीक देवताओं की नागरी लिपि के तैंतीस व्यंजन वर्ण हैं जिनमे पहला व्यंजन "क" ब्रह्म का प्रतीक है | ब्रह्म के तीन प्रमुख चिह्न ("लिंग") हैं -- ब्रह्मा, विष्णु और महेश, जिन्हें त्रि-क-लिंग कहा जाता था (त्रिकलिंग का अपभ्रंश ही तेलंगाना है, कलिंग भारतीय गणराज्यों का महासंघ था जिन्हें अन्तिम बार चाणक्य ने एकजुट किया था और अशोक ने नष्ट किया)| 
साक्षीभाव से देखने वाला अकर्ता ब्रह्म ("क") ही वेदों में इन्द्र कहलाता है (इन्द्र का धात्वार्थ है "भीतर देखने वाला") | ब्रह्म के अलावा के अलावा अन्य देवता हैं प्रजापति (ब्रह्मा), बारह आदित्य (जिनमें प्रमुख विष्णु हैं) , एकादश रूद्र (जो एक हो जाएँ तो शिव हैं) और आठ वसु (जो सभी वस्तुओं में बसते हैं और उनके अधिष्ठाता हैं)| अन्य सभी देवी-देवता इन तैंतीस प्रकार के देवताओं की ही भिन्न-भिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं |

एकादश रूद्र हैं मन और दस इन्द्रियाँ जो सांसारिक वासनाओं के पीछे जीव को दौड़ाकर रूदन कराते हैं, अतः रूद्र हैं | इच्छाओं के शान्त हो जाने पर समस्त इन्द्रियों का मन में प्रत्याहार हो जाता है और मन की वास्तविक शक्ति का उदय हो जाता है जब बिना इन्द्रियों के ही मन सब कुछ देख-सुन सकता है | मन का उदय जिसमें हो वही सच्चे अर्थों में मनुष्य कहलाने का अधिकारी है, जो इन्द्रियों और इच्छाओं के पाश में जकड़ा है वह पशु है | पशु का कल्याण ( ="शिव") जो करे वह पशुपति है |
ब्रह्मा सृष्टि बनाते हैं, उसके बाद उनसे क्या प्रयोजन ? अतः स्वार्थी मनुष्य ब्रह्मा की पूजा नहीं करते, उनकी मूर्तियाँ दुर्लभ हैं | शिव संहार और मुक्ति के देवता हैं और विष्णु पालन करते हैं, अतः इनकी पूजा सबसे अधिक होती है |
ये सब ब्रह्म के ही विभिन्न रूप हैं |

ब्रह्म के विरोधी समस्त सम्प्रदायों का स्रोत अब्रह्म (Abraham) है | इन सम्प्रदायों में केवल अपने सम्प्रदाय को सही और शेष सबको गलत समझने की असहिष्णुता कूट-कूटकर भरी है | दूसरों पर अपने सम्प्रदाय को थोपने के लिए ये लोग हर प्रकार की हिंसा आदि पाप करते हैं | धर्म के लक्षणों (धैर्य, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य, अक्रोध) का इन सम्प्रदायों में कोई महत्त्व नहीं होता | अतः भारत में उत्पन्न समस्त सम्प्रदायों (वैदिक, बौद्ध, जैन) को "धार्मिक" तथा अन्य सभी सम्प्रदायों को अधार्मिक सम्प्रदाय कहा जाता है |

कौन देवता बड़ा है यह अधार्मिक और अब्राहमिक सोच है जिसका स्रोत है तामसिक अहंकार | संसार में इतने युद्धादि हिंसा और अन्यान्य पाप किसी अन्य कारण से नहीं हुए जितने सम्प्रदायवादी अब्राहमिक सोच के कारण हुए |
ऋग्वेद का वचन है - सत एक है जिसे विप्र विभिन्न नामों से पुकारते हैं |

"हिन्दू" कोई सम्प्रदाय नहीं, बल्कि "धर्म" का ही पर्याय है | विदेशियों ने तीन सप्तसिन्धुओं की इस भूमि में रहने वालों को हिन्दू कहा | धर्म के भेद नहीं होते, जो धर्म से भिन्न हो वह अधर्म है ("सर्वधर्मसमभाव" बकवास है जो सम्प्रदाय को धर्म समझने वाले आधुनिक मूर्खों ने गढ़ लिया है)| सभी सच्चे सम्प्रदायों के प्रति आदर का भाव रखते हुए अपने सम्प्रदाय का अनुसरण करना "हिन्दुत्व" है | अतः ईश्वर के किसी भी स्वरूप में आस्था नहीं रखने वाला atheist भी हिन्दू हो सकता है (atheist को नास्तिक नहीं कहना चाहिए, धर्मशास्त्र के अनुसार वैदिक मार्ग को नहीं मानने वाला नास्तिक है) |
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श्री Vinay Jha सर की फेसबुक वाल से साभार 

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